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४२. कर्क संक्रांति प्रथम दिने, सर्वाभ्यंतर भाण । _ 'युग में कोइक" आसाढ नीं, पूनम तेह पिछाण ॥ ४३. हे भदंत ! जिण काल में, जंबूद्वीप मझार ।
मेरू थी दक्षिण दिन हवै, ऊणो मुहर्त अठार ॥ ४४. उत्तर दिशि पिण एतलु होवै दिवस तिवार।
पूरव पश्चिम निशि हुवै, जाझी मुहूर्त बार?
४३. जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अट्ठारस
मुहताणतरे दिवसे भवइ । ४४. तया णं उत्तरड्ढे वि अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे
भवइ, जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं साइरेगा दुवालसमुहत्ता
राई भवइ? ४५. हंता गोयमा ! जया णं जंबुद्दीवे जाव राई भवइ ।
(श० ५८)
४५. जिन कहै हंता गोयमा ! एहनुं न्याय पिछाण ।
सर्वाभ्यन्तर मंडल थकी, दूजे मंडल भाण ॥ ४६. कर्क संक्रांति दूजे दिने, दूजे मंडल भाण ।
युग में कोइक श्रावण तणी, विद एकम ए जाण ॥ ४७. भाग इकसठ एक मुहूर्त नां, दिवस घटै बे-बे भाग।
बे-बे भाग वधै निशा, इक-इक मंडल माग ।
४८. हे भदंत ! जिण काल में, मेरू थी पूरव मांय । ___ अठार मुहूर्त ऊणो दिन हुवै, इतलो पश्चिम थाय ॥
४६. अठार महूर्त ऊणो पश्चिमे, दक्षिण उत्तर ताम।
बार मुहूर्त जाझी निशा ? जिन कहै हंता आम ॥
४७. यदा सर्वाभ्यन्तरमण्डलानन्तरे मण्डले वर्तते सूर्य
स्तदा मुहूर्तंकषष्टिभागद्वयहीनाष्टादश मुहूर्तो दिवसो भवति .....राइ त्ति द्वाभ्यां मुहूर्तंकषष्टिभागाभ्यामधिका द्वादशमुहूर्ता राई भवइ ।।
(वृ० प० २०६) ४८, जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स
पुरस्थिमे णं अट्ठारसमुदत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तया णं पच्चत्थिमे वि अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भव; जया णं पच्चत्थिमे अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तदा णं जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं साइरेगा दुवालसमुहत्ता राई
भवइ? हंता गोयमा ! जाय भवइ। (श० शह) ५०. एवं एएणं कमेणं ओसारेयव्वं - सत्तरसमुहत्ते दिवसे
तेरसमुहुत्ता राई, तत्र सर्वाभ्यन्तरमण्डलानन्तरमण्डलादारभ्यकत्रिंशत्तममण्डलार्द्ध यदा सूर्यस्तदा सप्तदशमुहूर्तो दिवसो भवति, पूर्वोक्तहानिक्रमेण त्रयोदशमुहूर्ता च रात्रिरिति ।
(वृ० प० २०६)
५०. इम अनुक्रम करि आखवू, सतरै मुहूर्त दिन्न ।
तेरै महत रात्रि छै, इकतीसम मंडल जन्न ॥ ५१. बीजा मंडल थी जदा, इकतीसम अर्द्धह ।
सतरै महत दिन है तदा, तेर महत निशि जेह ।।
५२. "सर्वाभ्यंतर मंडले, दिन ह महर्त्त अठार।
द्वादश मुहूर्त ह निशा, हिव आगल सुविचार ॥ ५३. भाग इकसठ इक महतं ना, बीज मंडले जाण ।
दिन अष्टादश मुहूर्त में, दोय भाग दिन हाण ॥ ५४. इकतीसम मंडलार्द्ध में, सतरै महत दिन जाण ।
तेर मुहूर्त निशा 8 तदा, बे-बे भाग नी हाण ॥ १. किसी युग में। ४ भगवती-जोड़
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