________________
५५. बीजा मंडल नै विषे, दोय भाग दिन हाण ।
च्यार भाग तीजे मंडले, इम प्रति मंडल जाण ॥" (ज० स०) ५६. सतरे मुहूर्त थी अनंतरे, दिवस हुवै छै जेह।
तेर मुहूर्त जाझी निशा, बतीसमें अद्धेह ॥
५७ सोल मुहूर्त दिन ह जदा, चवद मुहूर्त निशि होय ।
इकसठमा मंडल विषे, बीजा मंडल थी जोय ॥
५८. बे भाग ऊणो सोल मुहूर्त नों, दिवस हुवै छै जेह।
चौदह मुहूर्त जाझी निशा, बासठमे मंडलेह ॥ ५६. पनर मुहूर्त दिन हुवै जदा, पनर मुहूर्त तब रात ।
बाणूमां मंडलार्द्ध में, दूजा मंडल थी थात ॥ ६० ऊणो पनर मुहूर्त दिन हुवै, पनर मुहूर्त जाझी तेह ।
रात्रि हुवै तिण अवसरे, साढा बाणूमे मंडलेह ।। ६१. चवद मुहूर्त दिन हुवै जदा, सोल मुहूर्त निशि न्हाल ।
इक सो बावीस मंडले, बीजा मंडल थी भाल । ६२. चवदै महत ऊणो दिन हुवै, सोलै मुहूर्त जाझी रात ।
इक सौ तेवीसमे मंडले, दूजा मंडल थी ख्यात ॥ ६३. तेर महत नो दिन जदा, सतरै महूर्त निशि मान ।
इक सौ साढा बावन में, दूजा मंडल थी जान ।।
५६. सत्तरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे साइरेगा तेरसमुहत्ता
राई। अयं च द्वितीयादारभ्य द्वात्रिंशत्तममण्डलार्द्ध भवति ।
(वृ० प० २०९) ५७. सोलसमुहुत्ते दिवसे चोद्दसमुहुत्ता राई । द्वितीयादारभ्यकषष्टितममण्डले।
(वृ० प० २०६) ५८. सोलसमुहृत्ताणंतरे दिवसे, साइरेगा चउद्दसमुहत्ता
राई। ५६. पण्णरसमुहुत्ते दिवसे पण्णरसमुहुत्ता राई । द्विनवतितम-मण्डलार्द्ध वर्तमाने सूर्ये ।
(वृ० प० २०६) ६०. पण्णरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे, साइरेगा पण्णरस
मुहुत्ता राई। ६१. चोद्दसमुहुत्ते दिवसे, सोलसमुहुत्ता राई ।
द्वाविंशत्युत्तरशततमे मण्डले। (वृ० प० २०६) ६२. चोद्दसमुहुत्ताणंतरे दिवसे, साइरेगा सोलसमुहुत्ता
राई। ६३. तेरसमुहृत्ते दिवसे, सत्तरसमुहुत्ता राई। सार्द्धद्विपञ्चाशदुत्तरशततमे मण्डले।
(वृ० प० २०६) ६४. तेरसमुहुत्ताणतरे दिवसे, साइरेगा सत्तरसमुहुत्ता राई।
(श० १०) ६५. 'बारसमुहत्ते दिवसे'त्ति त्र्यशीत्यधिकशततमे मण्डले सर्वबाह्य इत्यर्थः ।
(वृ० प० २०९)
६४. तेरै मुहूर्त ऊणो दिन जदा, सतरै मुहूर्त जाझो रात ।
इकसौ साढातेपनमे मंडले, दूजा मंडल थी थात ॥ ६५. बारै मुहूर्त नों दिन जदा, निशि हुवै मुहूर्त अठार ।
इकसौ तयांसीमे मंडले, बीजा मंडल थी धार ॥ ६६. दूजा मंडल थी सहु, कहिवं एह विचार ।
संख्या ए मंडल तणी, वृत्ति तणे अनुसार ॥ ६७. जंबू दक्षिणार्द्ध विषे जदा, जघन्य बारै महुर्त दिन्न ।
तिण काले उत्तरार्द्ध में, बार महूर्त रवि जन्न ।।
६८. उत्तरार्द्ध दिन बारै मुहर्त है, मेरू थकी तिवार।
पूर्व पश्चिम उत्कृष्ट थी, निशि ह मुहूर्त अठार ?
६७. जया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणड्ढे
जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढे वि, जया णं उत्तरड्ढे , तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ ? हंता गोयमा! एवं चेव उच्चारेयव्वं जाव राई भवइ।
(श०५।११) ७०. जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स
पुरत्थिमे णं जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं पच्चत्थिमे ण वि;
६६.
६६. जिन कहै हंता गोयमा! निश्चै करिनै एह ।
उच्चार छै जाव ही, निशि उत्कृष्ट ह तेह ॥ ७०. हे भदंत ! जिण काल में, जंबू पूरव मांय।
जघन्य दिवस बारे मुहूत्तं है, तब पश्चिम जघन्य थाय॥
श० ५, उ० १, ढाल ७४
५
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org