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________________ ५२. तए णं से नियंठिपुत्ते अणगारे नारयपुत्तं अणगारं एवं वयासी५३. दव्वादेसेण वि मे अज्जो ! सव्वे पोग्गला ५४. सपएसा वि, अप्पएसा वि-अणंता । ५५. खेत्तादेसेण वि एवं चेव कालादेसेण वि भावादेसेण वि एवं चेव । (सं० पा०) ५२. तब निग्रंथी-सुत, नारद-पुत्र अणगार । ते प्रति इम बोल्यो, वारू वचन विचार ।। ५३. अहो आर्य ! सांभल, द्रव्य थकी पहिछाण । सगलाई पुदगल, म्हारे मते इम जाण ।। ५४. प्रदेश-सहित पिण, वलि प्रदेश-रहीत । बिहं कह्या अनंता, पुद्गल द्रव्य वदीत ।। ५५. इम खेत्र थकी पिण, काल थकी सुवदीत । इम भाव थकी पिण, प्रदेश सहित रहीत ।। ५६. *जे द्विप्रदेशिक खंध प्रमुख, प्रदेश-सहीत पिछाणियै । प्रदेश-रहित परमाणु ते पिण, द्रव्य अनंता जाणियै ।। ५७. आकाश नां ते बे प्रदेशज, प्रमुख ऊपर जे रह्या । प्रदेश-सहितज खेत्र थी ए, अनंता पुद्गल कह्या ।। ५८. आकाश नों परदेश जे इक, तेह अवगाही रह्या । प्रदेश-रहित ए खेत्र थी, अनंता पुद्गल कह्या ।। ५६. बे समय प्रमुखज स्थिति नां जे, सप्रदेशी जाणिय । इक समय स्थिति नां अप्रदेशी, काल थी पहिछाणिय ।। ६०. गुण दोय आदि कृष्णादि कहिये, सप्रदेशी न्याव थी। जे एक गण कालादि वर्ण, अप्रदेशी भाव थी। ६१. हिवै द्रव्य जे अप्रदेशिक, खेत्र काल रु भाव थी । अप्रदेशादिकपणां प्रति, निरूपण ओछाव थी। ६२. जे द्रव्य थकी छै, अप्रदेशी सुविशेषि । ते खेत्र थकी पिण, निश्चेई अप्रदेशि ।। ६३. ते काल थकी पिण, हुवै कदा सप्रदेशि । वलि हवै किंवार, अप्रदेशि सुविशेषि ॥ ६४. ते भाव थकी पिण, हवै कदा सप्रदेशि । वलि हवै किवारे, अप्रदेशि सुविशेषि ॥ ६५. *जे द्रव्य थी अप्रदेशि ए, परमाणु-पुद्गल ने कह्य । ते खेत्र थी अप्रदेशि निश्चै, एक परदेशे रह्य॥ ६६. जे द्रव्य थी अप्रदेशि ए, परमाणु-पुद्गल नैं कह्य । ते काल थी सप्रदेशि, बे समयादि स्थिति कप' ला ॥ ६७. जे द्रव्य थी अप्रदेशि ए, परमाण-पुद्गल नैं कह्य । ते काल थी अप्रदेशि इम, इक समय स्थितिकपणुं लह्य ॥ ६८. जे द्रव्य थी अप्रदेशि ए, परमाणु-पुद्गल प्रति लहै । ते भाव थी सप्रदेशि इम, बे आदि गुण कृष्णादि है। ६२. जे दवओ अपएसे से खेत्तओ नियमा अपएसे, ६३. कालओ सिय सपएसे सिय अपएसे, ६४. भावओ सिय सपएसे सिय अपएसे । *लय : पूज मोटा मांजै टोटा लय : नमूं अनन्त चौबीसी श• ५, उ०८, ढाल ६२ ८६ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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