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सप्रदेशि
६६. जे द्रव्य वो अप्रदेशिए परमाणु युद्दल प्रति लहै । भाव थो अप्रदेशि इम गुण, एक कृष्णादिक रहै ॥ ७०. जे खेत्र बकी छे, अप्रदेशि सुविशेषि । ते द्रव्य थको सिय, अप्रदेशि || ७१. भजनाज काल थो, भाव थो भजना होय । जिम खेत्र थको तिम, काल भाव थी जोय ।। अप्रदेशि इक आकाश परदेशे रहा । ते द्रव्य थी सिय सप्रदेशी, खंध द्रव्य भणी का ॥ ७३. जे खेत्र थो अप्रदेशि इक आकाश परदेशे रह्य ं ।
७२. जिखे
ते द्रव्य थी सिय अप्रदेशो, एह परमाणू कह्य ॥ ७४. जे से भी अप्रदेशि इक आकाश परदेशे रा । काल थी सप्रदेशि बे समयादि स्थितिकपणुं लह्य ॥ ७५. जे क्षेत्र थी अप्रदेशि इक आकाश परदेशे रा ते काल भी अप्रदेशि छे, इक समय स्थितिकपणुं ला ७६. जे क्षेत्र थी अप्रदेशि इक आकाश परदेशे रा ।
ते भाव थी सप्रदेशि वे गुण आदि कृष्णादिक ना ॥ ७७. जे क्षेत्र भी अप्रदेशि इक आकाश परदेशे रा
ते भाव थी अप्रदेशि इक गुण कृष्ण नीलाविक लह्य ॥ ७८. *जिम खेत्र थकी जे, आख्यो छै विरतंत । इम काल थकी छे भाव धकी पिण हुंत ॥ ७६. १जे काल यो अप्रदेखि छ, एक समय स्थितिकपणें रहा। ते द्रव्य थी सिय सप्रदेशि, द्रव्य खंध भणी का ॥ ८०. जे काल थी अप्रदेशि छै, इक समय स्थितिकपणै रह्यः । ते द्रव्य थी अप्रदेशि छे, परमाणु युद्गल ने कहा ॥ ८१. जे काल थो अप्रदेशि है, इक समय स्थितिकपणें रा । ते खेत्र थी सप्रदेशि इम, बे आदि परदेशे का ॥ २. जे काल भी अप्रदेशि , इक समय स्थितिकपणें कहा ते से भी अप्रदेशि इक आकाश परदेशे रा ॥ ८३. जे काल थी अप्रदेशि छै, इक समय स्थितिकपणें रहा ।
ते भाव थी सप्रदेशि बे गुण कृष्ण नीलादिक कह्य ॥ ८४. जे काल थी अप्रदेशि छे, इक समय स्थितिकपणै रह्य ।
ते भाव थी अप्रदेशि इक गुण कृष्ण नीलादी का ॥ ८५. जे भाव थी अप्रदेशि इक गुण कृष्ण नीलादी रहा । ते द्रव्य थी सप्रदेशि छे इम, संध द्रव्य भणी का
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*लय : नमूं अनन्त चौबीसी +लय : पूज मोटा भांजे .......
६० भगवती-जोड़
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७०.
. जे खेत्तओ अपएसे से दव्वओ सिय सपएसे सिय अपएसे,
७१. कालओ भयणाए, भावओ भयणाए । जहा खेत्तओ एवं कालओ, भावओ ।
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