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________________ ८३. ते फुन मंगल रूप, जेह भाव प्रति अनुभव। शिव सुख लह्या अनूप, मंगलीक ए अर्थ छै।। वा०—षिधु धातु शास्त्र अर्थ कै विष अनै मंगल अर्थ के विष । शास्त्र कहितां शिक्षा ना देणहार पूर्व भव नै विष थया अन ते भाव मंगलरूपपणां प्रते अनुभवे इति सिद्धाः । ८४. तथा सिद्ध नित्य जान, काल अनागत नै विषै। अंत रहित पहिछाण, नित्य शास्वता सिद्ध इम।। वा०-अथवा सिद्ध कहितां नित्य अपर्यवसानस्थितिकपणां थकी अथवा प्रख्यातप्रसिद्ध उपलब्ध गुणसंदोहपणां थकी। ___ गीतक-छंद जिह दग्ध कीधा जे पुराणा कर्म बंध्या जेहन। शिव रूप मन्दिर-मस्तके अथवा गमन छ तेहनै ।। फुन ख्यात अनुशास्तार वा जे निष्ठितार्था छै सही। मंगल तणा कर्ताज मुझ न, सिद्ध ते थावो वही ।। ८४. और वा०---अथवा सिद्धा:-नित्याः, अपर्यवसानस्थितिकत्वात्, प्रख्याता वा भव्यरुपलब्धगुणसंदोहत्वात् । (वृ०-५०३) ८५, ८६. "ध्मातं सितं येन पुराणकर्म, यो वा गतो निर्वृतिसौधमूनि । ख्यातोऽनुशास्ता परिनिष्ठितार्थो, यः सोऽस्तु सिद्धः कृतमङ्गलो मे। (वृ०-प०३) सोरठा ते सिद्धां न सोय, नमस्कार भल भाव सं। करिवा योग्य सुहोय, कारण ते कहिये हिवै।। ८७. अतस्तेभ्यो नमः ८८. ८८, ८६. नमस्करणीयता चैषामविप्रणाशिज्ञानदर्शनसखवीर्यादिगुणयुक्ततया स्वविषयप्रमोदप्रकर्षोत्पादनेन भव्यानामतीवोपकारहेतुत्वादिति। (व०प०३) 1 गीतक-छंद अविनाशि छै तसं ज्ञान दर्शन सुख वीर्य आदिक सही। वर तेह गुण युक्तज करी स्व विषय नैं ज विर्ष वही।। अति ही प्रमोद उपायवे भव्य जीव नैं अतिशय करी। उपकार ना हेतूपणां थी नमस्कार विधि आचरी।। वा०—-[एहवा सिद्धां नै नमस्कार करिवा हुंती] जेहनो नाश न थाय एहवो ज्ञान दर्शण सुख वीर्यादिक गुणयुक्त पण करी नै स्व विषय प्रमोद ना प्रकर्ष उपजायवै करी भव्य जीवों नै अत्यन्त उपगार ना हेतुपणां थी ते सिद्धां नैं मांहरो नमस्कार थावो। १०. दूहा नमस्कार थावो बलि, आचारज ने आम । शब्दारथ एहनौं सखर, उच्चरिय अभिराम ।। ६७. नमो आयरियाणं। (श० १/१) ११. *आ मर्याद करेह, गुरु नी विषय सुलेह। आछेलाल। विनय रूप करि सेविय ।। ६१, ६२. आ-मर्यादया तद्विषयविनयरूपया चर्यन्ते सेव्यन्ते जिनशासनार्थोपदेशकतया तदाकाक्षिभिरि त्याचार्याः। *लय-आछेलाल... १२ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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