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________________ ५८. ५६. ६०. ६१. प्रथम शतक णमो अरहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूण हा आद । परमेष्ठी पंचक 'नमो अरिहंताणं' तास अर्थ कहिये अछे, सुणज्यो घर आह्लाद ॥ भाव । साव ॥ नमो निपात हि पद अछे द्रव्य अने फुन संकोचन नों अर्थ जसुं, आगल कहिये कर पद शिर पंचांग नल, सुप्रणिधानज सुसमाहित एकाग्र हो, नमस्कार नमस्कार अरहंत' ने इंद्रादिक पूजण योग्यज छ प्रभु नमस्कार Jain Education International नैं रूप । तद्रूप ॥ जेह । रूपेह ॥ १. णमो अरिहंताणं में जो अरहंत शब्द है, वृत्तिकार ने उसकी व्याख्या कई प्रकार से की है । वृत्तिकार द्वारा व्याख्यात अर्थ की दृष्टि से अरहंत शब्द के पांच रूप बनते हैं (५) । (१) अर्हत। (३) अरथान्त । (२) अरहर । (४) अरहंत । वृत्तिकार को उपलब्ध पाठान्तर के अनुसार इसके दो रूप ये भी हैंअरिहंत और अरहंत । ५८. नमो अरहंताणं । (०१०१) ५६. तत्र नम इति नैपातिकं पदं द्रव्यभावसङ्कोचार्थम् । (००३) ६०. करचरणमस्तक सुप्रणिधानरूपो नमस्कारो भवत्वि त्यर्थः । (०-०३) ६१. 'य' अमरवरविनिर्मिताशोकादिमहाप्रतिहार्य रूपां पूजामतीतः । ( वृ० प० ३) For Private & Personal Use Only शतक १, उद्देशक १, ढाल १ www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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