________________
वा०-आतप नी पर आतप-उष्णता, महा इसो आतप ते महाआतप । महातप नै उपतीर ते तीर समीप, प्रभव कहितां उत्पाद जे पर्वत नै विषे तिको महातपोपतीर प्रभव नामै प्रश्रवण झरणो परूप्यो।
वा०--आतप इबातप:-उष्णता महांश्चासावातपश्चेति महातपः महातपस्योपतीरं---तीरसमीपे प्रभवउत्पादो यत्रासौ महातपोपतीरप्रभवः, प्रश्रवति–क्षर
तीति प्रश्रवणः प्रस्यन्दन इत्यर्थः। (वृ०-प०१४२) ७७. पंच धणुसयाई आयाम-विक्खंभेणं, नाणादुमसंडमंडिउद्देसे
७८. सस्सिरीए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे
७६, ८०. पडिरूवे । तत्थ णं बहर उसिणजोणिया जीवा य
पोग्गला य उदगत्ताए वक्कमति विउक्कमंति
८१. चयंति उववज्जति ।
*ते धनुष पांच सौ, लंब चोड विशेषो। नाना तरु करी, मंडित तसु देशो।। सोभायमान ते, चित थाय प्रसन्नो। जोवा जोग्य छ, मनोहर जन्नो ।। प्रतिरूप देखतां, तृप्ति नहि थायो। त्यां बह ऊपजै, उदकपणे आयो।। बहु उष्णयोनिया, पुद्गल नैं जीवा। उपजे नै विणसिय, जलपणे अतीवा ।। एहीज अर्थ हिव, विपर्यय कजिये । तेह चवै अछ, फुन ऊपजिये ।। तिहां जल अधिको हुवै, उष्ण अपकायो। सदा श्रवै झरे, सुण गोयम ! वायो। महातपोपतीरज, प्रभव पासवणो। तेहनों अर्थ ए, भाख्यो छै निरणो।। सेवं भंते ! सेवं भंते ! सुविचारो। गोतम वीर नै, वंदै नमस्कारो।। ए दूजा शत नै, पंचम उद्देशे। आख्यो अर्थ ए, वारू सुविशेषे ।। ढाल चोमालीसमी, भिक्ख भारीमालो। ऋषराय प्रसाद थी, 'जय-जश' सविशालो।।
द्वितीयशते पंचमाद्देशकार्थः ।।२।५।।
८२, ८३. तब्बइरित्ते वि य णं सया समियं उसिणे-उसिणे
आउयाए अभिनिस्सवइ। एस णं गोयमा ! महातवोवतीरप्पभवे पासवणे। एस णं गोयमा ! महातबोवतीर
प्पभवस्स पासवणस्स अट्ठे पण्णत्ते। (श०२।११३) ८४. सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ।
(श०२११४)
१. पञ्चमोद्द शकस्यान्तेऽन्ययूथिका मिथ्याभाषिण उक्ताः,
अथ पष्ठे भाषास्वरूपमुच्यते। (वृ०-५० १४२)
ढाल : ४५
सोरठा पंच मुदेशे अंत, मिथ्याभाषी अन्ययुध । हिव छ? पभणत, भाषा स्वरूपज सांभलो ।।
+प्रभु वच वारू जी, हे देव ! जिनेन्द्र ! दयाल जन्म सुधारू जी (ध्रुपदं)
___ गोयम प्रश्न दियै जिन उत्तर' ।। (ध्रुपदं) *लय-भावै भावना *लयसाच बोलोजी तथा प्रभवो चोर चोरों ने समझाव १.पैतालीसवीं ढाल की लय दो प्रकार की दी गई है, इसीलिए वहां 'ध्रुपद' भी दो
प्रकार का है, प्रथम पद पहली लय के अनुसार लिया जाता है और दूसरा पद दूसरी लय के अनुसार।
२६६ भगवती-जोड़
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org