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________________ द्वितीय उपग प्रदेशि नृप, देव पहिला न्हावा पर विये, बलिकर्म ज्ञाता अध्येन सोलमै, द्रोपदी स्नान बलिकर्म कोतुका, प्रदर वस्त्र मज्जन घर सूं नीकली, आधी इतरा सूधी पाठ छै, देख ३२. पहिला तो न्हावो कह्यो, पछे ३१ २६. ३०. ३३. ३४. ३५. ३६. ३७. ३८. ३६. ४०. आपात चिलाती जंबूद्वीपपणती पूजवा कीधो मज्जन पर्छ वस्त्र पहिरया कह्या हिव स्त्री जाति स्वभावे नग्न थइ, न्हावा त्यां न्हावा ने घर मलै केहो दूहा कोणक जिन वंदन गयो, कह्यो दलिकमं शब्दज मूलगो, नत्थि Jain Education International विचारों कह्यो जोवो जिन घर मांय जाय । ताय ॥ गेह - पूज्यो स्नान तिहां पहिरेह || न्याय ॥ बलिकर्म । ए बैठी जिन प्रतिमा तणी । क्रिम ? महाया तिहां सोरठा बलिकर्मशब्दे जेह, पूजा तो कोणिक अधिकारेह, जिन-वंदन समये न बलि जंबूद्वीपपणती मांहि भरतेश्वर कोणक भी परे ताहि, बलिकर्म शब्द न स्नान तणो जिण स्थान, विस्तर पणे न तिहां बलिकम्मा जान पाठ देख निर्णय जलांजली परमुख, स्नान करती जे करें। कुरलादिक परतख, स्नान विशेषण एह एह छ । मूलगो ॥ वर्णव्यो । करो ॥ " ते मार्ट अवलोय, बलिकम्मा जे पाठ नुं । स्नान विशेषण सोय, अर्थ धर्मसी इम कियो ॥ १. ओवाइयं सू० ६३ जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ अणुपविसित्ता समत्तजनाउनाभिरामे विचित्तमणिरयकृमितरमभिन्नेन्हाणडवंसि नाणामणिरयणभत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुणिसणे सुहोदएहि गंधोदएहि पुफ्फोदएहि सुद्धोदएहि पुणो-पुणो कल्लाणग-पवरमज्जण विहीए मज्जिए तत्थ कोउयमहिला मावसा गंधकासासूहियंगे सरससु रहिगोसीसचंदा गुत्तिगतं अह्यसुमहम्पसरणसंबुए बुहमालावण्णगविलेव य आदिकविहार हा तिसरा पतंवमाणकटि सुतसोमे पिवेज्ज अनिलवंगक्लयिकाभरणे...। २७० भगवती जोड मर्म ॥ हेव । सोरठा न्हाय, कय बलिकम्मा पाठ त्यां । मांय किसो देव तिहां पूजियो ? , देव ? विस्तार | अवधार' ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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