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१२.
बलि-कर्म पोखरणी विषै, कीधो धुर आख्यात । ते पुष्करणी नै विषै, किसा देव नी जात ?
सार
सोरठा १३. मल्लि पिता रै पास, आवंतां न्हाया कह्यो।
जाव शब्द में तास, बलिकम्मा ए पाठ छै ।। १४. बलि मल्लि पट राजान, समझावा आवी तदा।
जाव शब्द में जान, बलिकम्मा ए पाठ छै ।। १५. देखो मल्लि भगवान, प्रतिमा पूजी केहनीं।
अध्येन अष्टम जान, आख्यो ज्ञाता नै विष ।। १६. बलिकम्मा नों जाण, अर्थ कहै पूजा तणो।
ए जिन-प्रतिमा नी माण, के पूजा कूल-देव नी? १७. जो स्थापै जिन - बिब, तो मल्लि तीर्थकर छता।
पूजे तेह अचंभ, वलि प्रतिमा किण जिन तणी।। जिन-प्रतिमा नी ताय, मल्लिनाथ पूजा करी।
तो भावे मुनि पाय, देखी प्रणमैं के नहीं ? १६. बलि अढी द्वीप रे मांय, भावे जिन उत्कृष्ट थी।
इक सो सित्तर थाय, जघन्य बीस थी नहिं घटै।। तिहां द्रव्य-जिन घर मांय, भावै-जिन वंदै क नहीं?
बलि तसं वाण सुहाय, तसु लेखै किम नहिं सुण ? २१. मल्लिनाथ घर मांहि, जिन-प्रतिमा पूजी कहै।
तो द्रव्य-जिन पिण ताहि, भावे-जिन वंदै न किम? जो थापै कुल - देव, मल्लिनाथ पूजा करी।
सुर सहाय स्वयमेव, किम न करै श्रावक समकती? २३. स्नान तणोज विशेष, अर्थ करै बलिकर्म नों।
तो टल्यो क्लेश अशेष, सह ठाम विशेषण स्नान नों।।
२०.
२४. भगवती नवमा शतक में, तेतीसम उद्देश ।
जमाली मज्जनघरे, स्नान बलिकर्म शेष ।। २५. अलंकार कर नीकल्यो, मज्जनघर थी हेव ।
इण न्हावा नै घर विषै, केहो पूज्यो देव ? वर्णनाग जे नत्तुओ, मज्जन - घर में स्नान । बलिकर्म करिनै नीकल्यो, मज्जन - घर थी जान ।। शतक सातमैं भगवती, नवम उद्देशै हेव । तिण न्हावा नैं घर मझै, केहो पूज्यो देव ? देवानंदा ब्राह्मणी, बलिकर्म मज्जन गेह । तिण न्हावा नै घर किसो, पूज्यो देव कहेह ।।
श०२, उ०५, ढा०४३ २६९
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