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________________ ५१. ५२. ५३. १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ६. १०. ११. इसी इह भव ए सेवा अम्ह ने जावत साथै आवसी, सेवा इम कहिनें मांहो मांहि नो वचन आप आपणा घर मझे, आया अंक पचीस न देस ए बयालीसम भिक्खु भारीमाल ऋषराय थी, 'जय जश' हरष विशाल || ढाल । पर भव मांय सुखदाय ॥ अंगीकार । सहु तिन वार ॥ २६५ भगवती-जोड़ फल ढाल : ४३ वहा स्नान करि बलि-कर्म कृत, तास अर्थ अर्थ कीधो गृह-देवता, देखो हिये कहे हेव । 1 देव कहेव ॥ 'केइक इहां गृह देवता जिन प्रतिमा पिण इतलो जान नहीं, ए किन पर नो देव ॥ तीर्थकर तो सही, तीन लोक नां देव छै ते किम जिन प्रतिमा भणी, घर नां जिन प्रतिमा जिन सारिखी, इम पि वलि स्थाप घर - देवता, ए किम कदापि कुल देवी प्रत, कहिये लौकिक हेते पूजता, श्रावक पिण स्वयमेव ॥ कहिता जाय ।। मिलसी न्याय ? घर नां देव । बा०—शतक ७ में उ० ९ में वृत्ति में न्हाया 'कयबलिकम्मा' बलि-कर्म ते देवता इको, ए किस देवता ? जिन-प्रतिमा हुवै तो जिन प्रतिमा कहिता, पिण देवता कहिया से कांइ प्रयोजन ? Jain Education International करी राणोज विशेष । शेष ॥ हेत । दूहा बलि-कर्म तो अर्थ धर्म-सी, स्नान कोषो बलि-कर्म शब्द करी, आया कारज ज्ञाता अध्येन दूसरे, सुत वांछा नें नागभूत यक्ष पूजवा गई सुभद्रा पोखरणी में स्नान करि, कीधा बलि-कर्म आम । देव नीं प्रतिमा पूजी ओढणो, एहवी छतीज कमल वह ग्रही नीकली, पुष्करणी थी तेथ ॥ बाव मध्य कि ताम || भीनी साड़ी बहु पुष्प गंध कांडे जे मूक्या धूपणो माध्य प्रमुख प्रथम, तेह गृही नैं पाछे नाग घर आयने प्रतिमा पुजी जाव वेसमण नी बलि पूजी आखी 1 वृतिकार | विचार ॥ तेह | जेह ॥ अवलोय ॥ । सोय || आम । ताम || ५१. एवं भत्रे जाव आणुगामियताए भविस्सति ५२. इति कट्टु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमट्ठे पडिसुर्णेति, पडिसुता जेणेव सवाई-पाई मिहाईमेव उपागच्छति For Private & Personal Use Only १. पहाया कयबलिकम्मा स्नानान्तरं कृतं बलिकर्म यैः स्वगृहदेवतानां ते तथा । (१०-१० १३०) www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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