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________________ १३२. प्रतिपूर्ण पोसह भलो, आहार अब्रह्म व्यापार छोडवै, पालतां तनु-संस्कार। छतां सार ।। १३२. पडिपुण्णं पोसह सम्म अणुपालेमाणा, 'पडिपुण्णं पोसह' ति आहारादिभेदाच्चतुर्विधमपि सर्वतः । (वृ०-५० १३६) १३३. समणे निगंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं । १३४. पीढ-फलग-सेज्जा संथारएणं ओसह-भेसज्जेणं १३३. श्रमण तपस्वी निग्रंथ नै, फासु एषणीक चिहुं आ'र । वस्त्र पात्र कांबलो, रजोहरण उदार ॥ १३४ पीढ़ अनै फलग पाटियो, सेज्या स्थानक उदार। दर्भादिक लघु साथ रै, ओषध भेषज सार ।। वा०- ओषधि ते एक द्रव्य आश्रय, भेषज्य ते द्रव्य-समुदाय रूप । तथा ओषधि ते त्रिफलादि, भेषज्य ते पथ्य। १३५. इम मुनि ने प्रतिलाभतां, ग्रह्या जे यथाजोग। ते तप करि आतम भावता, विचरै सुप्रयोग। १३५. पडिलाभमाणा... अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावमाणा विहरति । (श० २।६४) १३६. अंक पच्चीस न देश ए, इकचालीसमी ढाल। भिक्खु भारीमाल ऋषराय थी, 'जय-जश' संपति न्हाल ।। ढाल : ४२ दूहा तुंगिया नां थावक भला, पालै व्रत पचखाण । कवण प्रकार थयो तदा, सांभलजो सुविहाण ॥ _ *आज आनन्दा रे।(ध्रुपदं) २. तिण कालै नै तिण समय आनंदा रे, पार्श्वसंतानिया जान के, आज आनंदा रे। स्थविरा श्रुत-वृद्धा जिके आनन्दा रे, भगवंत महिमावान के, आज आनंदा रे॥ जाति-संपन्ना जाणवा, जाति-माता नों पक्ष । संपन्ना उत्तम युक्त ही, कुल-पितृ-पक्ष सुदक्ष ।। बल-संपन्ना आखिया, रूप - संपन्ना सार। विनय-संपन्ना विमल ही, ज्ञान-संपन्ना उदार ।। २. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासाबच्चिज्जा थेरा भगवंतो 'थेर' त्ति श्रुतवृद्धाः । (वृ०-प० १३६) ३. जातिसंपन्ना कुलसंपन्ना ४. बलसंपन्ना रूवसंपन्ना विणयसंपन्ना नाणसंपन्ना सोरठा बल संघयण विशेख, तेह थकी जे ऊपनों। प्राण जोर सपेख, संपन्न तिण कर युक्त ही।। रूप-संपन्ना एस, शोभन जे आचार करि। युक्त मुनि ने वेस, अथवा तनु सुंदर पणो।। ६. 'रूवसंपन्न' त्ति इह रूपं---सुविहितनेपथ्यं शरीरसुंदरता वा तेन सम्पन्नाः । *लय-बाड़ी फली अति भली मन भमरा रे २६४ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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