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८५. उसिहफलिहा नुं अर्थ ए, उन्नत अधिक स्फटिक तणौ पर तेहना, निर्मल
अति
८६.
८७.
55.
८६.
६०.
13
२.१.
६३.
६४.
मीनींद्र प्रवचन से विषे मन वृद्ध व्याख्या नुं अर्थ ए, जिन-धर्म अन्य आचारज इम कहै, ऊंची घर नां द्वार जड़े नहीं, भिक्षु
६५
अवगुयद्वारा घर
अतिहि
कला, कपाटादि द्वार जड़े नहीं, राखे
अन्य आचारज इम कहै, भिक्षु घर नां द्वार जड़े नहीं, अतिहि
सोरठा
विषे इसो ॥
वर्द्धमान
बलि
थकी ॥
'द्वितिय सूयगडांग मांहि दूजा अध्ययन नैं ए बिहुं पद नों ताहि, अर्थ दीपिका में २२. उसियफलिहा ताम, उच्च स्फटिक चित्र जेहना । परिणाम, एकहीज ए अर्थ त्यां ॥ अवगुयद्वार पर नो द्वार जड़े नहीं। पाम्या सुध मग सार, न करै भय किणही इस इक अर्थ उदार, विण भिक्षु प्रवेश नों न कियो तिहां लिगार, निर्णय कोज्यो चतुर सप्तम अध्ययन मांहि, कियो दीपिका में अरथ । उसिहफलिह ताहि निर्मल स्फटिक तणी परं ॥ वलि अवगुपद्वार, घर नो द्वार परतीर्थिक पिण धार तमु घर वैसी
अरथ ।
नर ।
६६.
६७. तनुं परिजन पिण जेह, सम्यक्त्व
थकी
चलायवा ।
समर्थ नहीं है तेह तसं उरतो द्वार जड़े नहीं ॥ १८. बिपद न पहिछाण, अर्थ कियो इण रीत सूं
जाण, नाम तिहां आस्यो नथी । सीस, हर्ष कुशल कृत दीपिका । सुजगीस, अर्थ कियो तिम आखियो ||
पिण भिक्षू न २६. सरि
तपागच्छ
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संतुष्ट |
मांहै पुष्ट ||
कीध ।
प्रसीध ।
आगल
अर्थे
पवित्त । चित्त ॥
शुद्ध सम्यक्त्व लाभ करी, किहि पाखंडी सं जेह डरता किंवाड़ जड़े नहीं, वृद्ध व्याख्या अर्थ एह ॥
करेह | उपाड़ा जेह ॥
प्रवेशन काज ।
उदार समाज ॥
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जड़े नहीं ।
धर्म कहै ।
८५. ऊसियफलिहा
उच्छ्रितम् -- उन्नतं स्फटिकमिव स्फटिकं चित्तं येषां ते उच्छ्रितस्फटिका | (बृ०२० १३५) ६. मौनीन्द्रवचनावादा परितुष्टमानसा इत्यर्थ इति वृद्धव्याख्या । ( १०-१० १३५) अर्गलास्थानादपनीयो
येत्या
कृतः... परिघः - अर्गला येषां ते उच्छ्रितपरिघाः, अथवोच्छ्रितो- गृहद्वारादपगतः परिघो येषां ते उच्छ्रितपरिषा ओदार्यातिशयादित्वेन भिक्षुकाण गृहप्रवेशनार्थमनर्गतद्वारा इत्यर्थः ।
( १०-१० १३५)
अदुवारा अप्रावृतद्वारा: कपाटादिभिरस्थतिगृहद्वारा इत्यर्थः । ( वृ०-१०-१३५) ८. सद्दर्शनलाभेन न कुतोऽपि पाषण्डिकाद्विभ्यति, शोभनमार्गपरिग्रहेणोद्घाटशिरसस्तिष्ठन्तीति भाव इति वृद्धव्याख्या । (०१० १२५) १०. अन्ये त्वाहु: - भिक्षुक प्रवेशार्थ मौदार्यादस्थगितगृहद्वारा इत्यर्थः । (१०-१० १२५)
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श० २, उ० ५ ढा० ४१
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