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________________ तिमहिज डरता ताय, अथवा स्वारथ कारण। प्रणमैं सुर नां पाय, ते मारग लौकीक छै ।। ते माटे पहिछाण, पाखंडी थी नहिं चले। दृढ़ आसथा जाण, मूल अर्थ असहेज्ज नों। सूत्र उववाई मांहि, अम्मड नै अधिकार पिण । जाव शब्द में ताहि, असहेज्जा ए पाठ है। तास अर्थ वृत्ति मांय, एक ईज कीधो अछ। आपद सुर असहाय, एह अर्थ कीधो नथी॥ कुतीथिक प्रेरित्त, सम्यक्त्व सू अविचलपणो। पर सहाय नवि चित्त, उववाइ-वृत्ति में कह्यो।। रायप्रणि वृत्त, असहेज्जा नों अरथ। कीधो अधिक पवित्त, चित्त लगाई सांभलो। कुतीर्थिक प्रेरित्त, सम्यक्त्व थी अविचलपणो। पर सहाय नहिं चित्त, ए अर्थ इक ईज त्यां।। आपद सुर असहाय, एह अर्थ कीधो नथी। कुतीथिक थी ताय, न चलै एहिज अर्थ त्यां ।। तुगिया नगर पिछाण, श्रावक नां वर्णन मझे। असहेज्जा नां जाण, दोय अर्थ है वृत्ति में ।। उववाई नी वृत्त, रायप्रवेणि वृत्ति में। असहेज्जा नों पवित्त, अर्थ एक कीधो अछै ।। ए बे साख विचार, तुंगिया नां श्रावक गुणे । असहेज्जा नों धार, द्वितिय अर्थ तो अवश्य ह॥ आपद सुर असहाय, ए गुण व अथवा न है। कारण तिण नों नांय, बिहं उपंग-वृत्ति देखतां ।। बलि जे कहै इम वाण, सुर सहाय नहि वांछणो। तो चउवीस जिन नां जाण, चउवीस यक्ष यक्षणी कहै ।। सासण - देव सहाय, तसं थुइ पडिकमणे पढे । बलि सेवजे ताय, पूजे केम चक्रेश्वरी? जती थका प्रत्यक्ष, गोरा काला भैरवै। माणभद्रादि यक्ष, आराधै रक्षा भणी।। ए लेखै तो जोय, सहाय देव नों वांछवै। निज श्रद्धा अवलोय, तुम गुरु पिण नहिं समकती ।। पूजै भैरू आद, श्रावक परणीजे तदा। शीतलादि अहलाद, तुझ लेखै नहिं श्रावकपणो ।। तिण सू इहां असहाय, सम्यक्त्व नों सेठापणो। श्रावक तंगिया माय, नियम नहीं गुण अधिक नों ।। (ज० स०) श०२, उ०५, ढा०४१ २५६ Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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