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१८.
शब्द शास्त्र व्याकरण ते, छंद शास्त्र नों जाण । निरुक्त व्युत्पत्तिकारकः, शास्त्र तेह पहिछाण ।।
जोतिष न पिण जाण ते, अपर बहू वलि जाण । ब्राह्मण परिव्राजक तणां, नय में निपुण वखाण ।।
१८. वागरणे छंदे निरुत्ते
'वागरण' ति शब्दशास्त्र 'छंदे' ति पद्य लक्षणशास्त्र
'निरुत्ते' त्ति शब्दव्युत्पत्तिकारकशास्त्र । (वृ०-५०११४) १६. जोतिसामयणे अण्णेसु य बहूसु बंभण्णएमु परिव्वायएसु
य नयेसु सुपरिनिट्ठिए या वि होत्था। (श० २०२४) 'जोतिसामयणे' त्ति ज्योतिः-शास्त्रे 'वंभण्णएसु' त्ति ब्राह्मणसंबंधिषु 'परिब्धायएसु यति परिव्राजकसत्केषु ।
(वृ०-५० ११४)
___ *खंधक बुद्धिवंतो। (ध्रुपदं) तिण सावत्थी नगरी मांहि वसंतो, पिंगल नामैं निग्रंथो रे। बैसालिक श्रावक सुखदायो, सुणे जिनवच रसिक सबायो रे ॥
२०. तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पिंगलए नाम नियंठे बेसालियसावए परिवसइ।
(श० २।२५)
२१.
२१. 'नियंठे' ति निम्रन्थः श्रमणः।
(वृ०-५० ११४)
सोरठा वृत्तिकार इण ठाम, अर्थ कियो निग्रंथ गें। निग्रंथ श्रमणज ताम, पिंगल व्याख्या नहि करी।। विशाल - कुल उत्पन्न, माता श्री महावीर नीं।
तेह विशाला मन्न, तास पुत्र वर्धमान जिन ।। २३.
वैशालिक भगवान, तेहना वच श्रवणे करी।
तद् वचनामत पान, वैशालिक थावक कह्यो।। २४. *वत्तिकार कहै पिंगल नामैं संत, वैसालिक महावीर भदंत।
श्रावक कह्यो तसु वच सुण लीन, ते पिंगल श्रमण प्रवीन ।। २५. केइ कहै पिंगल थमण छै एक, दूजो वैसालिक श्रावक देख।
इह विध साधु श्रावक विहं माण, तत्व केवलज्ञानी जाण ।। २६. पिंगल निग्रंथ वेसालियथावक तिवार, अन्य दिवस कदाचित् धार।
जिहां खंधक कात्यायनगोत्री त्यां आय, पूछ इह विध प्रश्न सोभाय ।।
२२, २३. 'वेसालियसावए' त्ति विशाला–महावीरजननी तस्या अपत्यमिति वैशालिक:-भगवास्तस्य वचनं शृणोति तद्रसिकत्वादिति वैशालिकथावकः, तद्वचनामृतपाननिरतः।
(वृ०-प० ११४)
२४, २५. पिंगलनाम नियंठे सोऽवि वेसालि-सावओ।
संजय-सावयस्सावि तत्थं जाणंति अरिहंता॥
२७. हे मागध ! मगध देश नां वासी, स्यं सअंत लोक विमासी?
के अनंत लोक कहीजे ताय ? ते अंत-रहित कहिवाय । २८. सअंत जीव ते अंत सहीत, कै जीव अंत रहीत ?
सिद्धी ते मुक्ति-सिला है सअंता, के अंत-रहित सिद्धी मता? २६. अंत सहित छै सिद्ध भगवान, के अंत-रहित सिद्ध जान?
किसा मरण थी संसार वधाव, किण मरणे संसार घटावै ? ३०. ए प्रश्न नों उत्तर दै अमन, म्है प्रश्न पूछ्या तुमनै ।
या प्रश्नां रो उत्तर दीधा फेर, बलि प्रश्न पूछसू हेर ।। ३१. इम पूछ्यै थकै खंधक मन मांह्यो, शंका कंखा वितिगिच्छा पायो।
शंका ते इहां उत्तर ए होय, अथवा न ह ? अवलोय।।
२६. तए णं से पिंगलए नामं नियंठे वेसालियसावए अण्णया
कयाइ जेणेव खंदए कच्चायणसगोत्ते तेणेव उवागच्छद,
उवागच्छित्ता खंदगं कच्चायणसगोत्तं इणमक्खेव पुच्छे२७. मागहा !
'मागह' ति मगधजनपदजातत्वान्मागधस्तस्यामन्त्रणं हे मागध !
(वृ०-५० ११८) २७-३०. कि सते लोए? अगते लोए? सते जीये?
अणंते जीवे? सअंता सिद्धी? अर्णता सिद्धी? सअंते सिद्धे? अगंते सिद्धे ? केण वा मरणेणं मरमाणे जीवे वड्ढति वा, हायति वा?–एतावताव आइक्खाहि वुच्चमाणे एवं।
(श० २।२६) ३१. तए णं से खंदए कच्चायणसगोते पिंगलएणं नियंठेणं
वेसालियसावएणं इणमक्खेवं पुच्छिए समाणे संकिए 'संकिए' किमिदमिहोतरमिदं वा? इति संजातशङ्कः।
(बृ०-५०११४)
*लय—समजू नर विरला
१६६ भगवती-जोड़
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