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४८. वलि चणि नशीत री जोय, जेह शिप्य अपडित सोय ।
रोग मेटण अंब सेह, पन रमैं उदेशै एह ।। ४६. ववहार नी वृत्ति मझार, कारणे अंब फल नो आहार।
गिलाण अद्धा मार्ग मांहि, वलि भिक्षा अण मिलियां ताहि ।। ५०. ऊणोदरी हुवै जद जोय, सचित्त आंबो ग्रहिवो सोय।
वृत्ति ववहार नवमैं उद्देश, एहवा वचन विरुद्ध विशेष ।। ५१. सातम उद्देशे नशीत, अर्थ चूणि में विपरीत।
धमै धातु लोह तंव आदि, राजा नै आभियोगे साधि ।। ५२. तथा मैथुन अर्थ भावै, लोह तंब धर्म नै धमावै।
ए प्रत्यक्ष विरुद्ध पिछाण, आगम थी अण मिलती वाण ।। ५३. आवसग नीं निर्यवित ताहि, परिठावणिया समिति मांहि।
साधु कर पंचक में काल, करिवा डाभ ना पूतला न्हाल ।। ५४. बृहत्कल्प री वृत्ति में एम, पुतला करिवा कह्या तेम।
एहवी विरुद्ध वृत्ति में पिछाण, आगम थी अणमिलती जाण ।। ५५. बृहत्कल्प तणी वृत्ति मांहि, तथा चणि में कहिवाहि।
कारण रात्रि-भोजन आण, ए प्रत्यक्ष विरुद्ध पिछाण ।। ५६. इत्यादिक विरुद्ध अनेक, वत्ति चणि महै विशेष।
सूत्र सू अण मिलती सोय, मानवा जोग्य ते किम होय ।। ५७. दूजे आचारंग सुविशेष, पहिला झण रै दशमैं उद्देश ।
कह्या मंस मच्छ भोगवणा, अस्थि कांटा ग्रही परिठवणा ।। ५८. एहवो समुच्चय पाठ मझारो, तिण रो विमल न्याय अवधारो।
पार्श्वचंद सूरि अर्थ कोधो, तिको टवा माहै छै प्रसीधो।। ५६. लोक प्रसिद्ध मंस मच्छादि, वत्तिकार वखाण्यो संवादि।
तिको सूत्र सू विरुद्ध है ताहि, तिण सूंए अर्थ संभवै नाहि ।। ६०. मांहिलो गिर मंस पिछाण, मंस मच्छ वणस्सइ जाण ।
अस्थि शब्दे कुलिया कहाय, ठाम ठांम सिद्धांत रै माय ।। ६१. सूत्र उत्सर्गे जाण्यो, वृत्ति में अपवाद बखाण्यो।
तिण सू सूत्र सू मिले विशेष, पाश्वचंद सूरि वच एष ।। ६२. टवा करण वाले पिण एम, वत्ति नै निषेधी छै तेम।
अण मिलतुं टीका नों अर्थ, है मानवा में असमर्थ ।। ६३.तिम माहण शब्द न जोय, वृत्ति में श्रावक कियो सोय।
वच मरोड कह्यो स्थूल-त्यागी, संभव अणमिलतो सागी।।
६४.
*उत्तराध्येन पचीस में, बह गाथा सुविचार । माहण साधु नैं क ह्यो, ज्यार पच आश्रव परिहार ।।
*लय-रात समय बड भीमजी मन मोहना
१६० भगवती-जोड़
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