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स्थूल हिंसा थी निवयों, तास माहण कहै एक। इक परम गीतार्थ नै कहै, ए बिहं अर्थ अविवेक ।। श्रमण उत्तर गुण सहीत छ, माहण मूल गुण सहीत । भगवती शतके पचमै छठे उदेशै प्रतीत ।। ए अल्प आयु अधिकार में, हिंसा झठ उचार। तथारूप समण वा माहण नैं, दियै अफासु आहार ।। वा शब्द समुच्चय अर्थ छै, अपर नाम पेक्षाय । नाम अनेक मुनि तणां तिहां विचै शब्द वा आय ।। सुयगडांग श्रुत-खंध दूसरै अध्येन पहिलै पेख । चवद नाम मुनि नां कह्या समण माहण धुर देख ।। वीच शब्द वा सह विष नामांतर पेक्षाय। तिण कारण श्रावक भणी माहण कहियै नाय ।। सुयगडांग रै सोलमैं, इंद्रिय-दमन कराय। मुक्ति-गमन जे जोग्य छै वोसिरावी जिण काय ॥ माहण कहीजे तेहने, श्रमण कहीजे ताम । भिक्षु नै निग्रंथ वलि, वा शब्द च्यारूं ठाम ।। किम प्रभु ! तसं माहण क ह्यो 'हे महामुनि ! बताय । ताम जिनेश्वर इम कहै सांभलज्यो सुखदाय ।। सह पाप कर्म सू निवर्यो, राग, द्वेष, कलहादि। जाव मिथ्यादर्शण थकी निवृत्त, करी समाधि ।। पंच-समित-समितो सहित यत्नवंत, नहि क्रोध । नहीं मान तसुं माहण कह्यो पाठ माहै ए सोध ।। प्रत्यक्ष पाठ माहै इहां सर्व पाप-पचखाण । कीधा तसुं माहण कह्यो वीर तणी ए वाण ।। भगवती वृत्ति माहै कह्यो स्थूल हिंसा-पचखाण । माहण कहिये तेहनें केम मिलै ए वाण? || सर्व त्यागी नै पाठ में माहण कह्यो जिनराय। देशव्रती मैं वत्ति में, अणमिलती इण न्याय ।। वृत्ति विषै सूतर थकी अणमिलती जे होय । क्रिम मानीजै तेहनै हिय विमासी जोय ।।
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यतनी ४६. दूज आचारंग वृत्ति विशेष, प्रथम झयण रै दशमै उदेश । ___ कहो कारण पडियां सोय, अफासु लूण खाणो जोय ।। ४७. तिणहिज टीका में पहिलै अध्ययन, पहिलै उदेश में ए वयन ।
कारणे नीलण फूलण सहीत, आधाकर्मी प्रमुख ए अनीत ।।
श०१, उ०७, ढा०२२ १५६
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