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३६. चीकण तनु जिम रज लागै, तिम द्वेष अनै अनुरागै ।
बंध्या-सिह-पडिबद्धा साग ।।
३६. अन्योऽन्यं स्नेहप्रतिबद्धा इति, अत्र रागादिरूपः स्नेहः,
यदाह--- स्नेहाभ्यक्तशरीरस्य रेणुना श्लिष्यते यथा गात्रम् । रागद्वेषक्लिन्नस्य कर्मबन्धो भवत्येवम् ।
(वृ०-५० ८३)
४१. से केणठेणं भंते ! जाव चिट्ठति?
४०. समुदाय - भावे माहोमाय, रहै छै जीव पुद्गल ताय ?
हंता रहै छै ए जिनवाय ।। ४१. किण अर्थे करी जिन राय, जीव पुद्गल नो समुदाय ।
जाव अन्योऽन्य रहिवाय?।। ४२. यथा दृष्टांत कहै जिन-वाण, द्रह जल-भूत पूर्ण प्रमाण ।
ऊणो किचित् मात्र म जाण ।। ४३. अति जल ते पाणी निकसतो, जल प्रचर ते विकसंतो।
चउदिशि वर्द्धमान थावंतो।। ४४. सम शब्द विषम ते नांहि, भर ते तिहां जल समुदाइ।
घट आकार तिष्ठे ताहि ।।
४२-४४. गोयमा! से जहाणामए हरदे सिया पुण्णे पुण्णप्प
माणे वोलट्टमाणे वोसट्टमाणे समभरघडताए चिट्ठा।
४४. समो न विषमो घटैकदेशमनाथितत्वेन भरो-जलसमु
दायो यत्र स समभरः तया समभरघटतया, सर्वथा भूतघटाकारतयेत्यर्थः ।
(वृ०-प०८३) ४५-५०. अहे णं केइ पुरिसे तंसि हरदंसि एग महं नावं सया
सर्व सयछिदं ओगाहेज्जा। से नूणं गोयमा! सा नावा तेहि आसवदारेहि आपूरमाणी-आपूरमाणी पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडत्ताए चिट्ठइ? हंता चिट्ठा।
४५. अहे कहितां हिवै पुरुष कोय, एहवा द्रह विप अवलोय ।
एक मोटी नावा मेली सोय ।। ४६. सूक्ष्म छिद्र....सदा जल आवै, सौ छिद्र मोटा कहिवावै।
एहवी नाव द्रहै अवगाहै ।। ४७. अहो गोयम ! आश्रव द्वार, जल आवा नै छिद्र तिवार।
जल सू भरी थकी जिवार ।। जल पूर्ण न ऊणी लिगार, जल उल्लास पामै अपार ।
जिण सू भरी रहै तलधार ।। ४६. जल सं भरयो घडो रहै सोय, तिम द्रह नै तल अवलोय।
नावा भरी थकी रहै जोय ।। ५०. वोर गोयम प्रते पूछत, द्रहतल इम नाव रहंत ?
गोयम भाखै-हां भगवत। ५१. तिण अर्थे छ पुद्गल जीवा, अन्योऽन्य बंध्या है सदीवा।
जेम द्रह-जल नाव अतीवा।।
५१. से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-अस्थि णं जीवा य
पोग्गला य अण्णमण्णबद्धा, अण्णमण्णपुट्ठा, अण्णमण्णमोगाढा, अण्णमग्णसिणेहपडिबद्धा, अण्णमण्णघडताए चिट्ठति।
(श०११३१३)
५२. लोक स्थिति विषैइज जाण, हिव आगल प्रश्न वखाण।
पूछे गोयम महा गुणखाण ॥ ५३. हे प्रभु ! सर्व ऋतु मझार, सर्व काल विष सुविचार।
अपकाय सूक्ष्म ए धार॥ ५४. तेह स्नेह प्रमाण सहीत, पडै छै एहवी अप सुप्रतीत।
जिन भाई-हता वदीत ।।
५३, ५४. अत्थि णं भंते ! सदा समितं सुहुमे सिणेहकाए पवडइ? हंता अत्थि।
(श० ११३१४)
१५० भगवती-जोड़
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