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ढाल : १७
पंचमदेश अंत में, जोतिषि वैमानीक। विमानवासा वर्णव्या, दश ठाणे तहतीक ।। जोतिषी विमानवास ते, प्रत्यक्ष ही दीसंत । छठे उदेशै आदि में, प्रश्न तास पूछंत ॥
१, २. अनन्तरोद्देशकेऽन्तिमसूत्रेषु 'असंखेज्जेसु णं भंते ! जाव
जोतिसियवेमाणियावासेसु' तथा 'संखेज्जेसु णं भंते ! वेमाणियावाससयसहस्सेसु' इत्येतदधीतं, तेषु च ज्योतिष्कविमानावासा: प्रत्यक्षा एवेति तद्गतदर्शनं प्रतीत्य तथा 'जावंते' इति यदुक्तमादिगाथायां तच्च दर्शयितुमाह
(वृ०-५०७७)
*हो जिनदेव ! प्रभुजी ! आपरा वचनामृत म्हानै वाल्हा लागै हो लाल ।
समय बच प्यारा लागै हो लाल, संवेग सुण्यां थी जागै हो लाल ।। (ध्रुपदं) ३. हे प्रभु ! सूर्य ऊगतो जी, गगन रह्यो दीसंत ।
आथमतो पिण एतलो जी, सूर्य दृष्टि आवंत ?
जिन कहै-हता गोयमा! जो, गगनत र थी जोय । ऊगतो दीसै जितो रवि, आथमतो पिण होय ।।
हे प्रभु ! ऊगंतो रवि जी, सगली दिशि जे खेत। करै प्रकाश उद्योत बलि जी, अल्प तथा बहु तेथ ।। तपति-शीत दूरो करै बलि, प्रभासयति नं अर्थ। टालै शीत विशेष थी जी, तिम आथमतोऽपि तदर्थ ।। तितै क्षेत्र सवओ समंता आतप स्यू अवभास । उज्जोएइ ? तवेइ ? पभासेइ? जिन कहै हंता तास ।।
३. जावइयाओ णं भंते ! ओवासंतराओ उदयंते मूरिए
चक्खुप्फासं हब्वमागच्छति, अत्थमंते वि य णं सूरिए तावतियाओ चेव ओवासंत राओ चक्खुप्फास हब्वमाग
च्छति? ४. हंता गोयमा ! जावइयाओ णं ओवासंतराओ उदयंते
सुरिए चक्खुप्फासं हब्बमागच्छति, अत्थमंते वि जाव हव्वमागच्छति।
(श०१२५६) ५. जावइय णं भते ! खेत्तं उदयंते सूरिए आयवेणं सब्वओ
समता ओभासेइ उज्जोएइ तवेइ पभासेइ, ६. 'तपति' अपनीतशीतं करोति 'प्रभासयति अतिताप
योगाद्विशेषतोऽपनीतशीतं विधत्ते। (वृ०-५०७८) ७. अत्थमंते वि य णं सूरिए तावइयं चेव खेत्त आय वेणं सव्वओ समंता ओभासेइ? उज्जोएइ? तवेइ? पभासेइ ? हंता गोयमा ! जावतिय णं खेत्तं जाव पभासेइ।
(श० ११२५७) ८. तं भंते ! कि पुढें ओभासेइ ? अपुट्ठ ओभासेइ जाव
छद्दिसि ओभासेई। (श० ११२५८-२६६) ६. एवं-उज्जोवेइ तबेइ पभासेइ। (श०१।२६७)
ते प्रभ ! स्यं फस्र्यो तिको जी? अवभासै छै खेत्त ?। कै अव भासे अशियो जी, जाव छहुं दिशि तेथ ।। इम उद्योत करै घणं जी, तप प्रभास एम। यावत् नियमा षट् दिशै जी, फस्र्यो प्रकास तेम ।।
१०.
सोरठा फयों छै जे खेत, तेहिज अवभासै कह्यो। हिवै फर्शणा एथ, तेहिज देखाडै अछ।।
१. अंग सुत्ताणि भाग २ शतक १ सूत्र २५८ से जाव की पूर्ति कर पाठ बढ़ाया गया है।
यह क्रम २६६ सूत्र तक है । जोड़ संक्षिप्त पाठ के आधार पर की गई है। *लय-रात रा अमला में होको गहिरो गूंजे हो लाल
१४२ भगवती-जोड़
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