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७७. •आचार्य आवक नाम मात्रे, कहितां दोष न जाणियै । अयोग्य तजिई योग्य आदरे, ए समाधि पित आगिये ॥
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इस वाण अवलोय |
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यतनी भंगंतरेहिनौं अर्थ जाण, वृत्ति मांहि कही दोय आदि संजोग भी जोव भांगा ऊपजे ते एक द्रव्य थी हिंसा कहाय, पिण भाव थी हिंसा न थाय । इम व्यार भांगा में लीजे, इहां प्रथम भांगो किम कहोजे ।। ईयाँ समिति चाल मुनिराय, कीडी प्रमुख जीव हणाय सिका द्रव्य भी हिंसा कहाय, पण भाव थी हिंसा न चाय ॥ द्रव्य - हिंसा मरण मात्र रूढ, पिण कर्म बंध नवि गूढ |
तिण सूं भाव-हिंसा न कहायो, जय गणपति कहै वि न्यायो । 'प्रथम आचारंग सुविशेष, अध्येन पंचम, पंचम उदेश | सम्यक् मानतो जे मुनिराय असम्यक् पिण सम्यक् थाय ।। ईर्या सहित चाल्यां जीव घात, तिण नैं घाती न कहिये विख्यात । तथा तीजे अध्ययन आचारंग, नदी नावा नीं आज्ञा सुचंग ॥ बृहत्कल्प र पउथे उदेश, एक मास मांहै सुविशेष | तीन नदी नीं आज्ञा कहाय, ए पिण कल्प बांध्यो जिनराय ॥ नदी मां बहती साध्वी ने साधु का हाथ यही नं। ग्रही जिन आशा नहीं लोपाय, बृहत्कल्प छठा रै मांय ॥ वीतराग थी जीव हणाव, हरियावही पुन्य कर्म बंधाय भगवती शतक अठारमा मांय, अष्टम उदेश कह्यो जिनराय || मरण मात्र द्रव्य - हिंसा ताय, पिण जिन आज्ञा सुखदाय । तिण से भाव हिंसा नहि होय, हणवा से कामी नहि कोय | इम जाणी ने शंक निवारै, जिन आज्ञा भणी दिल धारै। जिन आज्ञा मां नहि पाप इस निश्चय दिल मांहे थाप ॥ ( ज० स० )
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यतनी
नेगम संग्रह नै ववहार, ऋजुसूत्र द्रव्य नय च्यार । शब्द समभिरूड एवंभूत भाव नय तीनू वर सूत । यांरा वचन जूजूआ भाल, कोइ भर्म आण तिण काल । तिण से उत्तर आगल जोय, समाधान इसी विध होय ॥ *लय-पूज मोटा भांजे टोटा
११६ भगवती-जोह
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दूहा
नयंतरेहि ग्यारमों, नय-वच अंतर न्हाल । समझ पडयां विण तेह में, आण भर्म भयाल ||
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