SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ *चउ पछेवडी कमाड जडवू, ते स्त्री ना खोलियावती। वीतराग नी आण छै ते, मुक्ति - मारग भावती ।। अचेल साध्वी ने न कल्प, तो अचेल मल्लि किम रह्या। तास उत्तर-जिनेंद्र माटै कोय न देखे इम कह्या ।। मतंतरे नवमों का, मत में अंतर न्हाल । समझ पडयां विण जीव के, आण भर्म भयाल ।। यतनी एक वाचनाई सुबिमासी, भगवती ना पद सहस्र चोरासी। एक वाचनाई दोय लाख, ऊपर सहस्र अठ्यासी साख ।। *अधिकार विशेष अथवा वाचना, जजई गणधर तणी। ते मध्य कोयक ना इता पद, एम शंका अवगणी।। तथा लघ मोटा पद विशेप ते, न्याय करि इम जाणिय । बहु वाचना सत्य आण जिनवर, शंक मूल म आणियै ।। यतनी मतांतर पाठांतर पेख, गणधर नी वाचना सविशेख । केइ कहै पाठांतर एह, दोय ठाम लिख्या स्त्र जेह ।। महढे हंता आया वाद जेम, बिहं ठामे लिख्या धर प्रेम । पछै थया बहुश्रुती भेला, कियो सत्र संवाद समेला ।। किहां पाठ में अंतर देख, पाठांतर कहै केइ एक। इणमै शंका न आणवी जेह, सर्वज्ञ वदै सत्य तेह ।। दूहा भंगंतर दशमों कह्यो, अंतर भांगा मांहि। देखी नै शंका धरै, समझ पड्यां विन ताहि॥ यतनी ७४. चउभंगे आचार्य च्यार, सोवाग १ करंडक - धार । गणिका २ ववहारिया ३ राय ४, त्यांरा करंडिया सम कहिवाय ।। ७५. तथा श्रावक च्यार प्रकार, बाप सरीखा महा सुखकार । भाइ सरीखा मित्र सरीस, सोक सरीखा अशुद्ध कहीस ।। ७६. ए आचार्य केम कहिवाय, वले श्रावक पिण किम थाय? एहवो शंका आणे मन कोय. तिण रो उत्तर आगल जोय ।। *लय-पूज मोटा भांज टोटा www.jainelibrary.org Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy