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यतनी
२६. नव भंगे करीने जाण, सर्व अव्रत नों ते सर्व चारित्रयम, तो वल पांच चारित्र २७. तथा सामायक छेदोपस्थापन्न, उच्चार तसुं समव्यापन्न । पंच आश्रव त्याग समाज, तो ए जुदा कह्या किण काज ? ||
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उपशम चउथा थी इग्यारम दर्शन मोहनों जाणिये । इक प्रदेश पण नांहि वेदं सर्व उपशम ठाजिये ॥ इक भव मध्ये उत्कृष्ट थी, उपशम वार बे आवियै । इत्यादि गुणकरण अधिक छै ए, इम संदेह निवारिये ॥
३५.
चूहा
चरितंतरेहि पाठ ए, तीजो अंतरी जाण । चारित्र में अंतर गिणी, आणे संक अयाण ।।
* जूजूआ चरण परिणाम वस थी, दशम गुणठाणं वरण | चरित सूक्ष्म संपरायज, ग्यारमै उपशम-चरण ।।
पचखाण | कथा केम ||
द्वादशम तेरम चवदमं गुणठाण क्षायक चरण है । क्षयोपशम उपशम ने क्षय, चारित्र मोह नुं करण है । महाविदेह ने बावीस जिन मुनि, चरण सामाधक अछे । सरल नै बलि विमल प्रज्ञा, छेदोपस्थापन वलि न छै ।। प्रथम चरम जिन त धुर, सामायक अल्प काल ही । जघन्य सप्त दिन, मास षट उपरंत उत्कृष्ट न्हाल ही ।। वलि छेदोपस्थापन उचर, अल्प प्रज्ञा ते भणी । सातियार ने निरतिचार, ये भेद इस शंका हणी ॥ तेवीसमां जिन तणां मुनि, आवंत चरम जिन वार ए । इम नवदीक्षित छेदोपस्थापन, रीत निरतिचार ए ।। उभय जिन मुनि व्रत भंग, फिरि सामायक नवि धारए । छेदोपस्थापन आदर, ए कहा अतिचार ए॥
दूहा लिंगंतरेहि पाठ ए. चौथो अंतरी जाण लिंग अंतर अवलोक नै, आगे भर्म अवाण ।।
११२ भगवती जोड़
यतनी
३६. बावीस जिन मुनि महाविदेह खेत यस्त्र पंच रंग न मानोपेत । प्रथम चरम बारे श्वेत मान, अंतर सूं भर्म आण अजान ||
* लय-पूज मोटा भांज टोटा
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