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३७. * बावीस जिन मुनि महाविदेह ऋषि, सरल प्रज्ञा नां धणी । प्रथम ऋजु-जड चरम वक्र-जड़, लिंग फेर इम भ्रम हणी ।।
३८.
यतनी
३६. प्रवचन सिद्धांत में कह्या ताम, च्यार जाम तथा पंच जाम । एहवो समय अंतर अवलोय, शंका कंक्षा आण मूढ कोय ।। ४०. प्रथम जिन मुनि ऋजु जड जाण, चरिमना वक्र-जड पिछाण ।
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विचला जिन मुनि ऋजु प्रज्ञावंत, तिगड पंच जाम कहते ।। ४१. तथा पन्नवण चथा पद मांहि प्यार अनुत्तरविमान में ताहि । सुर नीं जघन्य स्थिति जगीस, आखी सागर इकतीस || ४२. समवायांग तीस में वाय, सुर प्यार अनुतर मांय केसलाएक सुर नीं जगीत स्थिति आखी सागर बत्तीस ॥ ४३. इहां शंका आणै मन कोय, तेहनों उत्तर ए अवलोय । पहिछाण, स्थिति बत्तीस सागर जाण ॥ अण, मल्लिना मुनि अवधि सुश्रेण । हजार, मनपर्यव आठ सौ सार || महार अवधिज्ञानी गुनसठ सौ उदार सतावन सौ मनपर्यवनाणी, ए शंका नो हिव उत्तर जाणी ।। ४६ नंदी में अवधि पट प्रकार, वे प्रकार मनपर्यव सार । ह्या ते पण सत्य जोय, थोडा ते एक जाति ना होय ||
कोइ सेज्या दिये ४४. तथा ज्ञाता आठमै
हद आख्या है दोय ४५. अनं समवायांग सूत्र
४७.
४८.
दूहा
परेहि पंचम प्रवचन सिद्धांत मोहि अंतरदेखी -मति शंका आ
ताहि ॥
"
४९.
५०.
वहा पावयणंतरेहिं छठो को प्रवचन सूत्र जोय । तेहनां जाण जे बहुश्रुती, तसुं कहण में अंतर होय ||
यतनी
जिम स्थविर पाय ना प्यार उत्तर जुआ दिया उदार । पूर्व तप पूर्व संजमेण कम्मिया संगियाए तेण ।।
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"सिए उत्तर के सुर आयुबंध विद्याणियं । सराग मध्ये आयु बंधे ए परमार्थ जाणिये ॥ तप सराग सराग-संजम रह्या कर्म खपावता । सरागछतां सुर आयु बंधे, मुदो इक इम भाखता । *लय-पूज मोटा भांज टोटा
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