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________________ सर्वत्र, तेषु चैवं शङ्कादयः स्युः–यदि नाम परमाण्वादिसकलरूपिद्रव्यावसानविषयग्राहकत्वेन संङ्ख्यातीतरूपाण्यवधिज्ञानानि सन्ति तत्किमपरेण मनःपर्यायज्ञा (वृ०-५०६०) नेन? ८. जिम तीजू अवधि ज्ञान माण, सर्व लोक रूपी द्रव्य जाण । ते जाणे मन ना पिण पर्याय, तो चोथो मनपज्जव किण न्याय ?।। ६. अथवा मनपज्जव थी जोय, असंख्यातगुणो अवलोय। अधिक क्षेत्र रूपी द्रव्य जाणे, एहवो अवधि कह्य जगभाणै ।। १०. मनपज्जव थी इतो जाण नाहीं, तो इणनै चोथै ठांम सूत्र मांही। अधिक ज्ञान माहै आण्यो, तेहनो स्यूं प्रयोग पिछाण्यो ? ।। ११. इम ऊपने छत संदेह, शंका कंखा वितिगिच्छा आणेह । भेद-कलुष-समापन्न पांम, ए संका तणो छै ठाम ।। १२. *मनपर्यव थी सामान्य अवधि ए, परम दष्टि करि पेखिये। लघु अवधि जघन्य आंगुल तणो, असंख्यातमों भाग देखियै ।। १३. अविरति समदृष्टि नरक, तिर्यंच में पिण ए लहै। गति च्यार में पिण ऊपजै, ते भणी अवधि सामान्य है ।। १४. मनपर्यव तो धुर थीज मोटो, पैंतालीस लक्ष जोजनं । अढी आंगुल ऊण छै ते, जघन्य पिण मोटो धनं ।। १५. मुनि लब्धवत बिना न उपजै, ते भणी इम न्हालियै । अवधि थी मनपर्यव मोटो, शंक इह विध टालिय।। दूहा दसणंतरेहिं दूसरो दर्शण अंतर देख । एहमें पिण समज्यां विना, आंणै भर्म अशेष ।। यतनी १७. दर्शण सम्यक्त्व श्रद्धा सुद्ध, दश बोल में इक न विरुद्ध । तो वलि उपशम प्रमुख पच, सम्यक्त्व जुदा कह्या ते स्यूं संच ।। १८. उपशम बडो क ह्यो किण न्याय, क्षयोपशम बडो किम न कहिवाय? कांयक क्षय कांयक उपशम, तसं कहियै सम्यक्त्व-क्षयोपशम ।। १६. मिथ्या मोहनी जे उदय आवी, ते कर्म दल तेण खपावी। अनै उदय नावी ते उपशमावी, ए सम्यक्त्व क्षयोपशम कहावी ।। २०. अन उपशम सम्यक्त्व ताय, सर्व दर्शण - मोह उपशमाय । दर्शन - मोह रो एक प्रदेश, उदय मांहि नहीं लवलेश ।। २१. तो जे उदय आवी ते खपावी, ते आश्री क्षयोपशम अधिकावी। उपशम सम्यवत्व अधिक किण न्याय ? इत्यादिक शंका मन माय ।। २२. *क्षयोपशम गुणठाण तुर्य थी, सातमां लग ए हुवै। इक भव संख्याती वार आवै, प्रदेश मिथ्या अनुभवै ।। *लय --पूज मोटा भांज टोटा श०१, उ०३, ढा०१३ १११ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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