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________________ ६७. माई प्रमादी विकर्वे रूप, आलोयां आराधक है तद्रप। भगवती तेरमा शतक मांडो, नवमै उदेशै कह्यो जिनरायो।। १८. ए छठे गुणठाणे वैक्रिय विशेष, प्रत्यक्ष भावे अशुभलेस। प्रायश्चित्त अशुभ रो आवै, शुभ लेस्या रो डंड न पावै ।। ६६. हय रूप मझै मुनिराय, पेस बहु जोजन चल्यो जाय ।। तिण नै निश्चै कह्यो अणगार, तीजा शतक : पंचमै सार। १००. ठाणांग सातमै ठाण, सात प्रकारे छद्मस्थ जाण । हिंसा झूठ अनै बलि अदत्त, शब्द रूप फर्श रस रक्त ।। १०१. पूजा सतकार नी लैर बेवै, ए कार्य सावज्ज कही में सेवै। परूपै ज्यू पालणी नावे, ए भावे माठी लेस्या नै प्रभावे ।। १०२. माठी लेस्या आवै तेहनो दंड, दोष री नहि थाप सुमंड। फिरै दोष थाप्यां छठो गुणठाणो, तथा श्रद्धा भ्रष्ट थी पिछाणो।। १०३. तथा नवो साधुपणो आव, एहवी भारी दोष लगावै। तो छठो गुण ठाणो फिराय, छ मासी सू पिण छठो न जाय ।। १०४. छठे गुण ठाणे चवदै जोग, पट् समुदघात पिण योग। पांच शरीर पिण पावै, तिम भावे छ लेस्या थावै ।। १०५. रहनेम राजमती नै बोल्यो, विषय वस मोह कर्म झोल्यो। ए प्रत्यक्ष असुभ भाव लेश, तेहथी असुभ कर्म नों प्रवेश ।। १०६. सीहो मोटे मोटे शब्दे रोयो, भगवती पनर में शतक जोयो। एपिण असुभ लेश्या पहिछ।ण, बलि असुभ जोग पिण जाण ।। १०७. अइमुत्ता नै बाल-लीला आई, पाणी में तिण पानी तिराई। औ पिण असुभ लेश्या असुभजोग, छठे गुणठाण ए दुप्रयोग।। १०८. धर्मघोष रा साधु ताय, गुरु नै बिन पूछयां जाय । निंदी नागश्री नै दुप्रयोग, ऐ पिण असुभ लेश्या असुभ जोग ।। १०६. इत्यादि छठा गुणठाणां मांय, लब्धि फोड़े तथा जे खलाय । तिण नै कहीजै असुभ लेश्या भाव, बलि असुभ जोग नों प्रभाव ।। ११०. पुलाक वकुश पडिसेवं, विशुद्ध लेण्या कही जिनदेवं । दोष सेवी दंड सन्मुख थाय, ते वेला आश्री सुद्ध जणाय ।। १११. तीन नियंठ दोष लगावै, ते वेला तो माठी लेश्या था । तिण रो कथन कियो दीसै नाय, दंड सन्मुख रो कथन जणाय ।। ११२. कह्यो पुलाक काल कर ताय, उत्कृष्ट अष्टम कल्प जाय । ते पिण पुलाक मिट्यां थी तुरंत, पिण पुलाक माहै न मरंत ।। ११३. नियंठो स्नातक विचार, कह्यो साहरण पाठ मझार । ते साहरण हुवां पछै केवल पाय, तिण आश्री साहरण क ह्यो ताय ।। ११४. तिम पुलाक प्रमुख त्रिहुं माय, विसुद्ध लेश्या कही जिनराय। दंड नै सन्मुख तिणवार, ग्रह्यो अंत तणो अधिकार ।। ७४ भगवती-जोड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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