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________________ ७६. तिम नील कापोत रा जाण, केइ लक्षण छठे गुणठाण। कृष्ण रा लक्षण छठ केई, केइ पंचमै पहिला थी लेई ।। ८०. भावे शुक्ल में गुण ठाणा तेर, केइ लक्षण प्रथम गुण हेर । तिम भावे कृष्ण ना जाण, केइ लक्षण छठे गुण ठाण ॥ ८१. कषायकुशील में कही छ लेश, छठा गुण ठाणा आश्री जिनेश । कपायकूशील पावै किण मांय, भगवती में गोयम पूछी वाय ।। तीर्थ में कै अतीर्थ में थाय? वीर कहै दोन में पाय। अतीर्थ में तो तीर्थकर मांय, के प्रत्येकवद्ध में पाय? ८३. जिन कहै तीर्थकर मांय, कषायकुशील नियंठो पाय । ए छद्मस्थ तीर्थंकर जोय, केवली में तो स्नातक होय ।। ८४. प्रत्येकबुद्ध में पिण लहिये, कषायकुशील नियंठो कहिये। ए शतक पचीसवां मांय, छठे उदेशै कह्यो जिन राय ।। ८५. मासीक सं लेइ छ - मासी, घणां बोल नसीत में राशी। त्यांरो प्रायश्चित ले मुनिराय, ए माठी लेश्या तणो दंड पाय ।। ८६. बलि के तेजु आहारीक, लब्धि फोड्यां क्रिया तहतोक। जघन्य तीन, उत्कृष्टी पंच, पन्नवण छतीसमें पद संच ।। आहारक शरीर निपजाय, प्रमाद आश्री अधिकरण ताय । भगवती सोलमें शतक जाण, प्रथम उदेश पाठ पिछाण ।। वागूल अधोसिर पग उर्द्ध लटक, तिम रूप वेत्रिय मुनि मटके। जनोइवाला नर जिम जाण, वलि जलोक नो रूप पिछाण ।। ८६. वले शकुन पंखी रूप धार, बे पग ह्य जिम साथ उपाडे । रूंख थी रूख जातो बराल, एहवो रूप वेक्रिय मुनि न्हाल ।। जीवजीवग पंखी विकुर्वतो, हंस तीर थी तीर रमंतो। एहवा रूप करि मुनिराय, ओ तो गगन-मंडल चल्यो जाय ।। वलि समुद्रवायस नी अलोल, किलोल थी बीजे किलोल । वलि चक्रधारक जिम होय, जाय गगन-मंडल माहै सोय ।। १२. इम छत्रधारक चमरधार, रत्न ग्रहि जाय गगन मझार। उत्पल पद्म कुमुद कर लेई, जायै आकास मारग तेही ।। ६३. बलि भूश-मणाल विदारी, पुरुष जातो देख्यो तिणवारी। एहवो रूप करी मुनिराय, ओ तो आकास मारग जाय ।। १४. बलि कमलिणी पाणी मझार, तिष्ठति देखी तिणवार । मुनि पिण एहवो रूप धार, वैक्रिय लब्धि की तिणयार ।। कृष्ण वर्णे देख्यो वन-खंड, ओ तो देखवा जोग्य सुमंड । एहवो वैक्रिय रूप बणाय, मुनि गगनमंडल चल्यो जाय ।। ६६. पुष्करणी चउखुणी सम तीर, मधुर पंख्यां ना शब्द गंभीर । एहवी पुष्करणी वैक्रिय वणाय, मुनि गगनमंडल माहै जाय ।। १. कौआ ६०. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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