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________________ दूसरा प्रकरण : प्रत्यक्ष ज्ञान सूत्र ८ १७ १४. से कि पासओ अंतगयं ? तं पासओ अंतगयं से जहानामए केद्र पुरिसे उनके वा चडलियं वा अलायं वा मणि वा जोई वा प वा पासओ कार्ड परिकडेमाणेपरिक डेमाणे गच्छेज्जा सेत्तं । पासओ अंतगयं । सेत्तं अंतगयं ॥ १५. से कि तं मयं ? मज्भगयं-से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चुडलिये वा अलायं वा र्माण वा जोइं वा पईवं वा मत्थए काउं गच्छेज्जा से मभयं ॥ 1 १६. अंतगयस्त मज्भगयस्स य को पदविसेसो ? पुरओ अंतगएणं ओहिनाणेणं पुरओ चेव संखेज्जाणि वा असंज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पास मग्गओ अंतगएणं ओहिनाणेणं मग्गओ चेव संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा जोयाई जाणइ पास । पासओ अंतगएणं ओहिनाणेणं पासओ चैव संवेज्जाणिवा असंज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ । मझगएणं ओहिनाणेणं सव्वओ समता संसेज्जाणि वा असं असंखेज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ । ओहिनाणं ॥ १७. से किं तं अणाणुगामियं ओहि - नाणं ? अणाणुगामियं ओहिनाणं - से जहानामए केइ पुरिसे एगं महंत जोहद्वाणं काउं तस्सेव जोइट्टास्स परिपेतहि परिपेरं तेहि परिघोलेमाणे- परिघोलेमाणे तमेव जोइद्वाणं पासइ, अण्णत्थ Jain Education International WAWA अथ किं तत् पार्श्वतः अन्तगतम् ? पार्श्वतः अन्तगतं तद् यथानाम कश्चित् पुरुषः उल्कां वा 'चूडलिय" वा अलातं वा मणि वा ज्योतिः वा प्रदीपं वा पार्श्वतः कृत्वा परिक परिकर्वन् गच्छेत्। तदेतत् पार्थतः अन्तगतम् । तदेतद् अन्तगतम् । । अथ किं तद् मध्यगतम् ? मध्यगतं - तद् यथानाम कश्चित् पुरुषः उल्कां वा 'बुडलियं' वा अलावा र्माण वा ज्योतिः वा प्रदीपं वा मस्तके कृत्वा गच्छेत् । तदेतद् मध्यगतम् । अन्तगत- मध्यगतयोः कः प्रतिविशेषः ? पुरतः अन्तगतेन अवधिज्ञानेन पुरतश्चैव संध्येयानि वा असंख्येयानि वा योजनानि जानाति पश्यति । 'माओ' अन्तगतेन अवधिज्ञानेन 'मग्गओ' चैव संख्येयानि वा असंख्येयानि वा योजनानि जानाति पश्यति । पार्श्वतः अन्तगतेन अवधिज्ञानेन पार्श्वतः चैव संख्येयानि वा असंख्येयानि वा योजनानि जानाति पश्यति । मध्यगतेन अवधिज्ञानेन सर्वतः समन्तात् संख्येयानि वा असंख्येयानि वा योजनानि जानाति पश्यति । सेत्तं आणुगामियं तदेतद् आनुगामिकम् अवधिज्ञानम् । अथ किं तद् अनानुगामिकम् अवधिज्ञानम् ? अनानुगामिकम् अवधिज्ञानम् -- तद् यथानाम कश्चित् पुरुषः एकं महत् ज्योतिः स्थानं कृत्वा तस्यैव ज्योतिःस्थानस्य परिपर्यन्तेषु - परिपर्यन्तेषु 'परिघोलेमाणे- परिघोलेमाणे' तदेव ज्योतिः स्थानं For Private & Personal Use Only ३६ १४. वह पार्श्वत: अंतगत क्या है ? पार्श्वतः अंतगत — जैसे कोई पुरुष दीपिका, मशाल, अलातचक्र, मणि, ज्योति अथवा प्रदीप को पार्श्व भाग में कर दाईं ओर अथवा बाईं ओर रखता हुआ चलता है। दीपिका आदि पार्श्व भाग को प्रकाशित करते हैं। इसी प्रकार जो ज्ञान पार्श्ववर्ती पदार्थों को प्रकाशित करता है। वह पार्श्वतः अंतगत है । वह अंतगत है । १५. वह मध्यगत क्या है ? मध्यगत- जैसे कोई पुरुष दीपिका, मशाल, अलातचक्र, मणि, ज्योति अथवा प्रदीप को मस्तक पर रखकर चलता है । मस्तक पर रखी हुई दीपिका आदि चारों ओर के भूभाग को प्रकाशित करते है । इसी प्रकार जो ज्ञान चारों ओर के पदार्थों को प्रकाशित करता है । वह मध्यगत है । १६. अंतगत और मध्यगत में क्या भेद है ? पुरतः अंतगत अवधिज्ञान पुरोवर्ती संख्येय अथवा असंख्येय योजनों तक जानता देखता है । पृष्ठतः अंतगत अवधिज्ञान पृष्ठवर्ती संख्येय अथवा असंख्येय योजनों तक जानता देखता है । पार्श्वतः अंतगत अवधिज्ञान पार्श्व भाग के संख्येय अथवा असंख्येय योजनों तक जानता देखता है। मध्यगत अवधिज्ञान चारों ओर के संख्येय अथवा असंख्येय योजनों तक जानता देखता है।" वह आनुगामि अवधिज्ञान है। १७. वह अनानुगामिक अवधिज्ञान क्या है ? अनानुगामिक अवधिज्ञान जैसे कोई एक बहुत बड़ा ज्योति कुण्ड बनाकर उसके परिपर्यन्त आस-पास चारों ओर चक्कर लगाता हुआ उस ज्योति स्थान को देखता है । अन्यत्र चले जाने पर उसे नहीं देखता । इसी प्रकार अमानुगामिक अवधिज्ञान जिस www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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