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________________ २५ मणुस्तान य पंचदियतिरिक्त जोगियान य ॥ ८. को हेक खओवसमियं ? खलवसमियं तयावरणिजाणं कम्माणं - उदिष्णानं खएणं, अणुदिणाणं उयसमेणं ओहिनाणं समुत्पज्जइ । अहवा—गुणपडिवण्णस्स अणगारस्स ओहिनाणं समुप्पज्जइ ॥ ६. तं समासओ छव्विहं पण्णत्तं तं जहा आणुगामियं अणाणुगामियं बढमाणयं हायमाणयं पडिवाद अप्पडिवाइ ॥ १०. से कि तं आणुगामियं ओहिनाणं ? आणुगामियं ओहिनाणं दुविहं पण्णत्तं तं जहा- अंतगयं च मक्षयं च ।। ११. से कि तं अंतगयं ? अंतगयं तिविहं पण्णतं तं जहा पुरओ अंतगयं, मग्गओ अंतगयं, पासओ अंतगयं ॥ १२. से कि तं पुरओ अंतगयं ? पुरजो अंतगयं से जहानामए केइ पुरिसे उनके वा चुडलियं वा अलायं वा र्माण वा जोई वा पईवं वा पुरओ काउं पणोल्लेमाणे- पणोल्लेमाणे गच्छेज्जा | सेत्तं पुरओ अंतगयं ॥ १३. से कि तं मग्गओ अंतगयं ? मग्गओ अंतगयं से जहानामए केद्र पुरिसे उनकं वा बुडलियं या अलायं वा मणि वा जोई वा पईवं या माओ फाउं अणुक डेमाणे -अणुकट्ठेमाणे गच्छेज्जा सेतं मग्गओ अंतगयं ॥ 1 Jain Education International मनुष्याणां च पञ्चेन्द्रियतियोनिकानां च । - को हेतुः क्षायोपशमिकम् ? क्षायोपशमिकम् तदावरीयानां कर्मणां उदीर्णानां क्षण, अनुदीर्णानाम उपशमेन अवधिज्ञानं समुत्पद्यते । अथवा -- गुणप्रतिपन्नस्य अनगारस्य अवधिज्ञानं समुत्पद्यते। तत् समासतः षड्विधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा अनुगामिकम् अनानुगामिक वर्धमानके हावमानकं प्रतिपाति अप्रतिपाति । अथ तद् अनुगामिकम् अवधिज्ञानम् ? अनुगामिकम् अवधिज्ञानं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा अन्तगतञ्च मध्यगतञ्च । अथ किं तद् अन्तगतम् ? अन्तगतं त्रिविधं प्रतप्तं तद्यथा पुरतः अन्तगतं 'मन्गओ' अन्तगतं पार्श्वतः अन्तगतम् । " अथ किं तत् पुरतः अन्तगतम् ? पुरतः अन्तगतं तद् यथानाम कश्चित् पुरुषः उल्कों का 'लिये' वा अलातं वा मणि वा ज्योतिः वा प्रदीपं वा पुरतः कृत्वा प्रमुदन् प्रणुदन् गच्छेत् । तदेतत् पुरतः अन्तगतम् । अथ किं तद् 'मग्गओ' अन्तगतम् ? 'माओ' अन्तगतं तद् मग्गओ' यथानाम कश्चित् पुरुषः उल्कां वा 'चुडलियं' वा अलातं वा मणि वा ज्योतिः वा प्रदीपं वा 'मगओ' कृत्वा अनुकर्मन् अनुकर्षन् गच्छेत् । तदेतन् 'भग्गओ' अन्तगतम् । For Private & Personal Use Only ८. क्षयोपशमिक अवधिज्ञान का हेतु क्या है ? उदीर्ण अवधिज्ञानावरणीय कर्मों के क्षय तथा अनुदीर्ण अवधिज्ञानावरणीय कर्मों के उपशम से क्षायोपशमिक अवधिज्ञान उत्पन्न होता है । अथवा गुणप्रतिपन्न अनगार के अवधिज्ञान उत्पन्न होता है । " ९. वह अवधिज्ञान संक्षेप में छ प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- आनुगामिक १. अनानुगामिक २. वर्द्धमान ३. हीयमान ४ प्रतिपाति अप्रतिपाति । नंदी १०. वह आनुनासिक अवधिज्ञान क्या है ? आनुगामिक अवधिज्ञान दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- १. अन्तगत २ मध्यगत । ११, वह अन्तगत क्या है ? अन्तगत तीन प्रकार का प्रज्ञप्त है, १. पुरतः अन्तगत २. पृष्ठतः ३. पार्श्वतः अन्तगत । १३. वह पृष्ठतः अन्तगत क्या है ? जैसेअन्तगत १२. वह पुरतः अन्तगत क्या है ? पुरतः अन्तगत-जैसे कोई पुरुष दीपिका, मशाल, अलातचक्र, मणि, ज्योति अथवा प्रदीप को आगे कर उन्हें प्रेरित करता हुआ, प्रेरित करता हुआ चलता है। दीपिका आदि पुरोवर्ती भाग को प्रकाशित करते हैं। इसी प्रकार जो ज्ञान पुरोवर्ती पदार्थों को प्रकाशित करता हैं। वह पुरतः अन्तगत है । पृष्ठतः अन्तगत - जैसे कोई पुरुष दीपिका, मशाल, अलातचक्र, मणि, ज्योति अथवा प्रदीप को पीछे की ओर ले जाकर पृष्ठ भाग में रखता हुआ, पृष्ठ भाग में रखता हुआ चलता है। दीपिका आदि पृष्टवर्ती भाग को प्रकाशित करते हैं। इसी प्रकार जो ज्ञान पृष्ठवर्ती पदार्थों को प्रकाशित करता हैं । वह पृष्ठतः अन्तगत है । www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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