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नंदी
ब्याज पर दिए रुपए वसूल नहीं कर सकती थी। उसने पति के मित्र का सहयोग चाहा । मित्र ने कहा-कुछ हिस्सा मुझे भी मिलना चाहिए । सेठानी ने कहा-जो तुम चाहो, वह मुझे दे देना।
सेठ के मित्र ने थोड़े ही समय में पूरा रुपया वसूल कर लिया और थोड़ा सा हिस्सा सेठानी को देने लगा। सेठानी न्यायालय में पहुंची । न्यायाधीश ने उस व्यक्ति को बुलाकर पूछा-क्या शर्त हुई थी? वह बोला-सेठानी ने मुझे कहा कि जो तुम चाहो वह मुझे देना । न्यायाधीश ने वसूल किए गए सारे रुपए मंगवाए और उनको दो भागों में बांटा । एक भाग छोटा था, दूसरा बड़ा फिर उसको पूछा-तुम कौन सा भाग चाहते हो? उसने बड़े भाग की ओर संकेत किया। न्यायाधीश ने वह भाग सेठानी को देते हुए कहा-जो तुम चाहते हो, वह उसे मिलेगा। क्योंकि तुम्हारी शर्त यही है । २७. शत सहस्र दृष्टांत'
एक परिव्राजक था । उसकी विलक्षण स्मृति थी। वह एक बार सुनी हुई बात को याद रख लेता था। उसे अपनी स्मृति पर गर्व था। उसके पास एक सोने का पात्र था। उसने घोषणा करवाई कि जो मुझे अश्रुतपूर्व सुनाएगा उसे मैं यह पात्र दे दूंगा। उसकी घोषणा सुन अनेक व्यक्ति आए पर परिव्राजक ने सबको परास्त कर दिया क्योंकि वह हर बात ज्यों कि त्यों सुना देता था।
एक सिद्ध पुत्र ने कहा-मैं नई बात सुनाऊंगा। वे दोनों राजा के पास गए। जनता को साक्षी कर सिद्धपुत्र बोलातुम्हारे पिताजी ने मेरे पिताजी से एक लाख रुपए लिए थे। यह बात तुम्हें याद हो तो लाख रुपये दो अन्यथा तुम्हारा स्वर्ण पात्र दो। परिव्राजक स्तब्ध रह गया । अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उसने वह स्वर्ण पात्र उसको दे दिया ।
२. 'भरतनट' के अन्तर्वर्ती दृष्टान्त १. मेष दृष्टान्त'
रोहक की बुद्धि का परीक्षण करने के लिए राजा ने गांव वालों के पास एक मेंढा भेजा और यह आज्ञा दी कि पन्द्रह दिन बाद इसे लौटाना है । ध्यान रहे इसका वजन न घटे, न बढ़े।
ग्रामवासी चिन्तातुर हो गए। रोहक की बुद्धि पर उन्हें विश्वास हो गया था इसलिए उन्होंने उसको बुलाकर सारी स्थिति बता दी। रोहक ने चिन्तन कर कहा- इसे खाने के लिए पर्याप्त चारा दो और इसको भेड़िये के पिंजरे के पास बांध दो। गांव वालों ने पन्द्रह दिन बाद मेंढा लौटा दिया। राजा ने वजन किया पर कोई अन्तर नहीं आया।
राजा-मेंडे का वजन क्यों नहीं घटा ? ग्रामवासी-खूब खिलाया, इसलिए वजन नहीं घटा। राजा-खूब खिलाया, फिर वजन क्यों नहीं बढ़ा ? ग्रामवासी-- इसके सामने भेड़िये का पिंजरा था, इसलिए वजन नहीं बढ़ा। राजा-यह किसकी सूझबूझ है ?
ग्रामवासी-रोहक की। २. कुक्कुट दृष्टान्त'
राजा ने एक मुर्गा गांव वालों के पास भेजा और आज्ञा दी कि दूसरे मुर्गे के बिना ही इसे लड़ना सिखाओ, जब वह लड़ाकू बन जाए तो लौटा देना। बात रोहक के पास पहुंची। उसने एक बड़ा दर्पण मंगवाया। उसे साफ कर मुर्गे के सामने रख दिया। मुर्गे ने दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देखा । उसे अपना प्रतिपक्षी समझा, लड़ने लगा। थोड़े ही दिनों में मुर्गा लड़ाकू बन गया। राजा रोहक की सूझबूझ से बहुत प्रभावित हुआ। १. (क) आवश्यकचूणि, पृ. ५५२
(घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प १४६,१४७ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८२
(च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम, पृ. १३३ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२३
(छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १७८ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १५९ ।।
३. (क) आवश्यक चूणि, पृ. ५४५ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३७
(ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २७८ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८०
(ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५१७ २. (क) आवश्यक चूणि, पृष्ठ ५४५
(घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १४७ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २७७,२७८
(च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३३ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५१७
(छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १७८
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