SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट ३ : कथा २०६ एक दिन उसने अपने मित्र के दो बच्चों को खाने के लिये बुलाया और किसी गुप्त स्थान में उन्हें छिपा दिया । बालक लौटकर नहीं आये तो कपटी मित्र उन्हें बुलाने के लिये गया। उसके मित्र ने वहां से प्रतिमा हटवा दी और बंदरों को छोड़ दिया । बंदर उछल-कूद मचाते हुए आए और उसे प्रतिमा समझकर उस पर चढ़ गए । सरल मित्र ने कपटी मित्र से कहा-मित्र ये दोनों तुम्हारे पुत्र हैं। इससे कपटी को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने कहा--तुम देखो ये कितना आत्मीय संबंध प्रदर्शित करते हैं । तब कपटी मित्र ने पूछा-क्या मनुष्य कभी बंदर बन सकता है ? इस प्रश्न के उत्तर में दूसरे मित्र ने कहा-मित्र ! भाग्य की बात है दुर्भाग्य वश गड़ा हुआ खजाना कोयला बन गया है तो बच्चे बंदर क्यों नहीं बन सकते । कपटी मित्र ने सोचा-लगता है इसको घटना का पता लग गया है। यदि मैं कलह करूंगा तो यह मुझे राजकुल में ले जायेगा। इसका आधा हिस्सा लौटाये बिना यह मेरे पुत्रों को नहीं लौटाएगा। विवश होकर उसने वस्तु स्थिति बता दी । उसे आधा हिस्सा दे दिया। सरल मित्र ने दोनों पुत्र उसको सौंप दिये। २४. शिक्षा दृष्टांत' एक व्यक्ति धनुर्वेद की विद्या में दक्ष था। उसने कुछ धनिक पुत्रों को धनुर्वेद की शिक्षा दी। उनके पिता आदि को इसका पता चला तो उन्होंने सोचा कुमारों ने इनको बहुत ज्यादा धन दिया है । यह शिक्षक यहां से जायेगा उस समय इसे मारकर धन वापस ले लेंगे। शिक्षक को इस योजना का पता लग गया। उसने अपने और अपने धन की रक्षा के लिये उपाय सोचा। उसने अपने ग्रामवासी बंधुजनों को अपनी योजना बता दी और कहा-अमुक दिन मैं गोबर के उपले नदी में फेंकूगा, आप उन्हें लेकर सुरक्षित रखना । उन्होंने उसको स्वीकृति दे दी। इधर शिक्षक ने समग्र धन को गोबर में डालकर उपले बना दिये और सुखा लिया। उसने धनिक पुत्रों से कहा हमारे कुल की एक विधि है । हम तिथि पर्व के दिन स्नान कर मन्त्रोच्चार के साथ उपलों को नदी में डालते हैं । उन्होंने कहा जैसी आपकी इच्छा । निश्चित दिन की रात्रि में वह धनिक पुत्रों के साथ नदी पर गया, स्नान किया और मन्त्रोच्चार के साथ उपले नदी में डाल दिये । बंधुजन उन्हें लेकर अपने गांव चले गए । शिक्षक अपने घर लौट आया। कुछ दिन बीतने के बाद वह अपने गांव जाने के लिए विदा हुआ। धनिक पुत्रों और पितृजनों को बुलाकर कहा अब मैं अपने गांव जा रहा हूं। मेरे पास इन कपड़ों के सिवाय कुछ नहीं है आप देखलें। उनको आकिञ्चन्य देखा और मारने की बात समाप्त हो गई। २५. अर्थशास्त्र दृष्टांत' एक वणिक के दो पत्नियां थीं । एक पुत्रवती और दूसरी वन्ध्या। वह सौतेली मां उसका बहुत लाड-प्यार करती थी। पालन-पोषण करती थी । पुत्र दोनों को ही अपनी मां मान रहा था, दोनों में कोई भेद नहीं कर रहा था। वह वणिक अपनी पत्नी और पुत्र को लेकर देशांतर चला गया। सुमतिनाथ की जन्मभूमि में चला गया। वहां कुछ दिनों के बाद वणिक की मृत्यु हो गई । दोनों स्त्रियों में कलह उत्पन्न हुआ। एक ने कहा यह पुत्र मेरा है इसलिए मैं गृहस्वामिनी हूं, दूसरी ने भी वैसा ही कहा । न्याय के लिए राजकुल पहुंचे। वहां भी कुछ निपटारा नहीं हुआ। सुमति तीर्थकर की मां मंगलादेवी ने कहा इनका न्याय मैं करूंगी। राजा ने स्वीकृति दे दी। महारानी ने उन दोनों स्त्रियों को बुलाकर कहा-'कुछ समय बाद मेरी कोख से पुत्र उत्पन्न होगा वह कुछ बड़ा होकर इस अशोक वृक्ष के नीचे बैठकर तुम्हारा न्याय करेगा। इतने समय तक तुम दोनों इस बच्चे को खिलाओ, पिलाओ, इसका पालन पोषण करो। वन्ध्या ने सोचा कोई बात नहीं इतना समय तो मिला फिर जो होगा, वह देखा जाएगा। वह प्रसन्न हो गई। उसने खुश होकर महारानी के निर्देश को स्वीकार कर लिया। दूसरे पुत्र की माता उदास हो गई। महारानी ने वन्ध्या से कहा इसकी उदासी बता रही है कि पुत्र की असली मां यह है । यह गृहस्वामिनी होगी, पुत्र इसके साथ रहेगा। २६. इच्छा दृष्टांत' किसी शहर में एक धनाढ्य सेठ था। वह लोगों को ब्याज पर रुपये देता था। अचानक उसका देहांत हो गया । सेठानी १. (क) आवश्यक चूणि. पृ. ५५१ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १५८,१५९ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८१, २८२ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३६ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२२ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८० (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १५८ ३. (क) आवश्यक चूणि, पृ.५५२ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३६ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८२ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८० (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२३ २. (क) आवश्यक चूणि. पृ. ५५१ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १५९ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८२ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम, पृ. १३७ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२२,५२३ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy