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________________ नंदी कुछ दिनों बाद वह व्यक्ति परदेश से लौटा । अपनी थैली घर ले जाकर उसने देखा - रुपए खोटे थे । उसने सेठ से उस सम्बन्ध में 'पूछा, पर सेठ इन्कार हो गया । वह व्यक्ति राजकुल में गया । न्यायाधीश ने पूछा—तुम्हारी नौली में कितने रुपये थे । उसने कहा —— हजार । न्यायाधीश ने हजार रुपये गिनकर उस नौली में डालने शुरू किए, नौली भर गई । सब रुपये उसमें नहीं समा सके । नीचे का भाग कुछ संकडा हो गया था । न्यायाधीश ने निर्णय दिया कि धरोहर को अपने पास रखने वाले ने अनैतिक व्यवहार किया है । इसलिए उसे हजार रुपए पुनः देने पड़े । २०८ २१. नाणक दृष्टांत' [ रुपयों की नौली ] किसी सेठ के पास मोहरों से भरी थैली रखकर एक व्यक्ति परदेश गया । पुनः आकर अपनी नौली संभाली तो उसमें नकली मोहरें निकलीं । सेठ से पूछताछ की गई, पर उसने अपनी गलती स्वीकार नहीं की । आखिर न्यायालय तक बात पहुंची । न्यायाधीश ने उस व्यक्ति से थैली रखने का समय पूछा । उसने सम्वत् और दिन बता दिए । थैली में जो मोहरें निकलीं वे उस समय से बाद में बनी हुई थी । थैली पुरानी थी और मोहरें नई । सेठ को न्यायाधीश ने अपराधी घोषित किया और धरोहर के स्वामी को असली मोहरें दिलवा दीं। २२. एक संन्यासी के पास किसी व्यक्ति ने धरोहर रूप में मोहरों की नौली रखी। कुछ वर्षों बाद उसने अपनी थैली मांगी तो उसने नहीं दी । आज दूंगा, कल दूंगा, इस प्रकार वह ठगता रहा । संन्यासी की ठगवृत्ति को पहचान कर उसने कुछ जुआरियों को नौली निकालने का काम सौंपा। उन्होंने स्वीकार किया और कहा-हम तुम्हारी नौली ला देंगे। वे जुआरी गेरुए वस्त्र पहनकर सोने की पादुकाएं लेकर संन्यासी के पास पहुंचे और बोले- हम तीर्थ यात्रा पर जाना चाहते हैं। आप सत्यनिष्ठ होने के कारण परम विश्वसनीय हैं। इसलिए स्वर्ण पादुकाएं आपके पास रहेंगी। ठीक उसी समय वह संकेतित पुरुष उनके पास आ गया और उसने अपनी धरोहर मांगी । संन्यासी ने सोचा यदि मैं इसकी नौली नहीं लौटाऊंगा तो सोने की इन पादुकाओं से वंचित रह जाऊंगा । इसलिए सोने की पादुकाओं के लोभ में आकर उसने उसकी धरोहर उसे लौटा दी। जुआरी भी कोई बहाना बनाकर अपनी स्वर्ण पादुकाएं लेकर चले गये । २३. बालक निधान दृष्टांत' एक गांव में दो मित्र थे। एक मित्र सरल था पर दूसरा कपटी एक बार वे दोनों ग्रामांतर से आ रहे थे। मार्ग में उन्हें खजाना मिला। कपटी मित्र ने कहा- आज नक्षत्र ठीक नहीं है, हम इसे कल ले जायेंगे। रात्रि के समय कपटी मित्र ने वहां से खजाना निकाल लिया और वहां कोयले रख दिये। दूसरे दिन दोनों मित्र वहां आए और कोयले देखकर निराश हो गये । कपटी मित्र छाती पीट-पीट कर रोने लगा और बोला- यह देव कैसा है, आंखें दीं और फिर छीन ली। पहले निधान दिखाया अब अंगारे दिखा रहा है। वह बार-बार मित्र के मुंह को देखता रहा। दूसरे मित्र ने जान लिया कि इसने खजाना हड़प लिया है। उसने खजाने को हड़पने की बात को चेहरे पर नहीं आने दिया। समझाने के लिये बोला खिन्न मत बनो। क्या खिन्न होने से खजाना लौट आयेगा। दोनों अपने-अपने घर चले गये । कपटी मित्र से बदला लेने के लिये वह प्रयत्नशील हो गया। उसने अपने मित्र की मिट्टी की मूर्ति बनवाई और दो बंदर पाले । मूर्ति के हाथों, कंधों तथा गोद में खाने की चीजें रखकर वह वहां भूखे बंदरों को छोड़ने लगा। बंदर प्रतिमा पर चढ़कर उछल कूद मचाते और चीजें खाने लग जाते । १. (क) आवश्यक चूर्णि पृ. ५५० (ख) आवश्यकनिर्मुक्ति हारिचीया वृत्ति, पृ. २८१ (ग) आवश्यक निर्युक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२२ (घ) नन्दी मलयगिरीवा वृत्ति प. १५६१५७ (च) नन्दी हारिभद्रया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३६ (छ) आवश्यक निर्युक्ति दीपिका, प. १७९ २. (क) आवश्यक चूर्ण, पृ. ५५०, ५५१ (ख) आवश्यक निर्मुक्ति हारिमदीयावृत्ति, पृ. २०१ (ग) आवश्यक निर्युक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२२ Jain Education International (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १५७ (च) नन्दी हारिनीया वृत्ति टिप्पणम्, पृ. १३६ (छ) आवश्यक निर्युक्ति दीपिका, प. १७९ ३. (क) आवश्यक चूर्ण, पृ. ५५१ (ख) आवश्यक निर्मुक्ति हारिभीयावृत्ति १. २०१ (ग) आवश्यक निर्युक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२२ (घ) नन्दी मलयविरीया वृत्ति प. १५७ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३६ (छ) आवश्यक निर्युक्ति दीपिका, प. १७९, १८० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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