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नंदो
१. चूणि
इसके कर्ता जिनदासमहत्तर हैं। चूणि के अन्त में उन्होंने अपना नाम रहस्यात्मक ढंग से व्यक्त किया है। इसका रचनाकाल शक सम्वत् ५९८ है। तदनुसार विक्रम सम्वत् ७३३ है । चूणि का ग्रन्थान १५०० श्लोक प्रमाण है।'
चूणि की भाषा प्राकृत है। इसमें केवलज्ञान-केवलदर्शन विषयक विभिन्न मतों की चर्चा है तथा स्थान-स्थान पर विशेषावश्यक भाष्य एवं विशेषणवती की गाथाओं का उल्लेख किया गया है। कालिक एवं उत्कालिक सूत्रों में परिगणित कई ग्रन्थ ऐसे हैं जो आज उपलब्ध नहीं हैं तथा जिनके इतिहास को जानने का एकमात्र प्रामाणिक आधार नंदी चूणि है। इसी तरह वीरनिर्वाण के पश्चात् होने वाले प्रभावक वाचनाचार्यों का क्रमबद्ध इतिहास जानने के लिए भी प्रस्तुत चूर्णि में महत्त्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध होती है। २. हारिभद्रीया वृत्ति
नंदीसूत्र पर विरचित हारिभद्रीया वृत्ति बहुत विस्तृत नहीं है । इसका ग्रन्थान २३३६ श्लोक प्रमाण है । इसमें हरिभद्रसूरि ने मुख्यत: चूणि का अनुसरण किया है । कहीं-कहीं यथावकाश कुछ विस्तार किया है। कहीं-कहीं चूणिकार के मत की 'अन्ये' कहते हुए समीक्षा भी की है। इसकी भाषा संस्कृत है । विशेषणवती, विशेषावश्यकभाष्य, प्रमाणवार्तिक आदि के उद्धरण भी इसमें उपलब्ध होते हैं । हरिभद्रसूरि ने इसका नाम नन्धध्ययन विवरण कहा है। ३. मलयगिरीया वृत्ति
मलयगिरि विरचित नंदी वृत्ति लगभग ७७३१ इलोक प्रमाण है। इसमें चूर्णिकार के अनंतर हरिभद्र का भी स्मरण किया गया है। विभिन्न जैन दार्शनिक मान्यताओं को जानने के लिए यह वृत्ति विशेष उपयोगी है। इसमें जीवत्वसिद्धि, सर्वज्ञत्वसिद्धि, अपौरुषेयत्वखण्डन, नैरात्म्यखण्डन, सांख्यमुक्तिनिरास, धर्मधर्मी का भेदाभेद आदि का सविस्तार विवेचन है। बुद्धिचतुष्टय के संदर्भ में प्राप्त लगभग सभी दृष्टांत सरल, सुन्दर एवं लालित्यपूर्ण शैली में उपलब्ध हैं। ४. नंदीसूत्रवृत्ति टिप्पनकम्
प्रस्तुत टिप्पनक की रचना मलधारी श्रीचंद्रसूरि ने की। यह हारिभद्रीया वृत्ति के परिशिष्ट में प्रकाशित है। इसका आधार मूलत: हारिभद्रीया वृत्ति है। हरिभद्र ने अपनी वृत्ति में कथाओं के संदर्भ में आवश्यक वृत्ति का निर्देश किया है। श्रीचंद्रसूरि ने उनका विस्तार से निरूपण किया है।
२९ अगस्त, १९९६ जैन विश्व भारती
लाडनूं
गणाधिपति तुलसी आचार्य महाप्रज्ञ
१. नंदी चूणि, पृ. ८३ २. वही ३. वही
४. हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ९७ ५. वही, पृ. २६,४४ ६. मलयगिरीया वृत्ति, प. २५०
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