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________________ १७३ प्र० ५, सू०८०-६१, टि०४ ९. अनुत्तरोपपातिकदशा ठाणं प्रस्तुत आगम में अनुत्तर नामक देवलोकों में उत्पन्न होने वाले व्यक्तियों का प्रतिपादन है।' स्थानाङ्ग, तत्त्वार्थवात्तिक और धवला में अध्ययनों के नाम मिलते हैं। अनुत्तरोपपातिकदशा के वर्तमान स्वरूप में कुछ नाम भिन्न हैं । द्रष्टव्य यन्त्रअनुत्तरोपपातिकदशा तत्त्वार्थवार्तिक/धवला जाली ऋषिदास ऋषिदास मयाली धन्य वान्य उपयाली सुनक्षत्र सुनक्षत्र पुरुषसेन कार्तिक कार्तिक वारिपेण संस्थान नन्द दीर्घदन्त शालिभद्र नन्दन लष्टदन्त आनन्द शालिभद्र वेहल्ल तेतली अभय वैहायस दशार्णभद्र वारिषेण अभय अतिमुक्त चिलातपुत्र १०. प्रश्नव्याकरण प्रस्तुत आगम में प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं इसलिए इसका नाम प्रश्नव्याकरण है। चूर्णिकार ने प्रश्नव्याकरण के दो विषय बतलाए हैं १. आश्रव और संवर २. अंगुष्ठ, बाहु आदि प्रश्नों का व्याकरण । किन्तु मूल पाठ में पांच आश्रव और पांच संवर द्वारों का उल्लेख नहीं है। प्रश्नव्याकरण के उपलब्ध स्वरूप में केवल पांच आश्रव और पांच संवर द्वारों का प्रतिपादन है। इससे प्रश्नव्याकरण के मूल स्वरूप के विलुप्त होने की संभावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। तत्त्वार्थवात्तिक और धवला में भी पांच आथव व पांच संवर द्वारों का उल्लेख नहीं है। आक्षेप, विक्षेप के द्वारा हेतुनयाश्रित प्रश्नों का व्याकरण करना प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तु है। इसमें लौकिक और वैदिक अर्थो (सिद्धांतों) का निर्णय किया जाता है । यह भट्ट अकलंक का मत है। इसमें अंगुष्ठ प्रश्न आदि का स्पष्ट उल्लेख नहीं है । निर्णय के द्वारा उसका संकेत पकड़ा जा सकता है। धवलाकार ने प्रारम्भ में आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेजनी, निवेदनी इन चार कथाओं का उल्लेख किया है। उसके पश्चात् हृत, नष्ट, मुष्टि आदि प्रश्नों का उल्लेख किया है।" प्रस्तुत आगम में प्रश्नव्याकरण के अध्ययनों की संख्या बतलाई गई है।' स्थानाङ्ग में इसका नाम प्रश्नव्याकरणदशा है और उसके दश अध्ययनों का उल्लेख किया गया है'-१ उपमा २. संख्या ३. ऋषिभाषित ४. आचार्यभाषित ५. महावीरभाषित ६. क्षोमकप्रश्न ७. कोमलप्रश्न ८. आदर्शप्रश्न ९. अंगुष्ठप्रश्न १०. बाहुप्रश्न । १. अंगसुत्ताणि, भाग ३, अणुत्तरोबवाइयदसाओ, १।१।४ २. (क) ठाणं, १०।११४ (ख) तत्वार्थवात्तिक, १२०, पृ. ७३ (ग) षट्खण्डागम, पुस्तक १, पृ. १०५ ३. नन्दी चूणि, पृ. ६९ : पन्हावागरणे अंगे पंचासवदाराइदा व्याख्येयाः परप्पवादिणो य। अंगद्र-बाहपसिणादियाणं च पसिणाणं अटुत्तरं सतं। ४. तत्त्वार्थवार्तिक, ११२०, पृ. ७३,७४ ५. षट्खण्डागम, पुस्तक १, पृ. १०५-१०८ ६. नवसुत्ताणि, नंदी. सू. ९० ७. ठाणं, १०१११६ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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