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नंदी
११. विपाकश्रुत
इसमें शुभ और अशुभ कर्मों के विपाक का वर्णन है।
प्रस्तुत आगम (नंदी) में ग्यारह अङ्गों का वर्णन उपलब्ध है। समवायाङ्ग में भी वह उपलब्ध है। इन दोनों में नन्दी का वर्णन मौलिक और समवायाङ्ग का वर्णन नन्दी से संकलित प्रतीत होता है । नन्दी में उपलब्ध आगम वर्णन का अध्ययन करने पर दो प्रश्न उपस्थित होते हैं
१. नन्दी में आगमों के आकार और प्रकार का पद परिमाण और विषय वस्तु का वर्णन है। क्या सूत्रकार ने उपलब्ध आगमों के आधार पर किया अथवा अनुश्रुति के आधार पर किया ?
२. यदि आगम संकलना के समय आगमों का इतना विशाल रूप प्राप्त था, तो वह कब विलुप्त हुआ?
इनका उत्तर वाचना के प्रसंग में खोजा जा सकता है। वीर निर्वाण की दूसरी शताब्दी से लेकर वीर निर्वाण की दसवीं शताब्दी तक पांच वाचनाएं हुई । इन वाचनाओं का उद्देश्य आगमों की विलुप्त होती हुई सामग्री को व्यवस्थित रखना था। नन्दी की रचना पांचवीं वाचना के समय की है। इससे सहज ही जाना जा सकता है कि आगम अपने पूर्ण आकार में उपलब्ध नहीं थे, उनका वर्णन अनुश्रुति के आधार पर किया है।
प्रश्नव्याकरण का उपलब्ध स्वरूप नन्दी और समवायांग में वर्णित स्वरूप से सर्वथा भिन्न है। वर्तमान स्वरूप में केवल पांच आश्रव और पांच संवर द्वारों का निरूपण मिलता है। इसके दो निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं
१. यदि नन्दी सूत्रकार के सम्मुख पांच आश्रव द्वार और पांच संवर द्वारों का निरूपण होता तो वे उनका उल्लेख अवश्य करते।
२. उन्होंने आश्रव और संवर का उल्लेख नहीं किया इससे अनुमान किया जा सकता है कि प्रश्नव्याकरण के वर्तमान स्वरूप की रचना देवधिगणी के उत्तरकाल में हुई है। उपलब्ध ग्यारह अंगों में भाषा, विषयवस्तु आदि की दृष्टि से आचारांग सबसे प्राचीन माना जाता है।
आगम प्रामाण्य
वर्तमान में ग्यारह अङ्ग उपलब्ध हैं। बारहवां अङ्ग दृष्टिवाद विच्छिन्न है। आगम प्रामाण्य की चर्चा रचनाकार और चालू परम्परा दोनों के आधार पर करणीय है। रचना की दष्टि से बारह अङ्ग गणधरकृत है। इसलिए इनका प्रामाण्य असन्दिग्ध है । अङ्ग साहित्य के अतिरिक्त अङ्गबाह्य के रचनाकार स्थविर हैं। सब स्थविरों की रचना का प्रामाण्य नहीं माना जाता । जिनकी रचना का प्रामाण्य माना जाता है, उनके लिए पूर्व ज्ञान की सीमा निर्धारित है। व्यवहार (प्रायश्चित्तदान) के लिए छह पुरुष अधिकृत माने गए हैं-केवलज्ञानी, अवधिज्ञानी, मन:पर्यवज्ञानी, चतुर्दशपूर्वी, दशपूर्वी और नवपूर्वी । किन्तु इस प्रकरण में आगम रचना की दृष्टि से विचार नहीं किया गया है। रचना की दृष्टि से विचार करने पर नवपूर्वी द्वारा रचित आगम की रचना का प्रामाण्य सिद्ध नहीं होता। नन्दीसूत्र के आधार पर जयाचार्य ने सम्पूर्ण दशपूर्वी के वचन का प्रामाण्य स्वीकार किया है। प्रस्तुत आगम (नन्दी) में बतलाया गया है कि द्वादशाङ्गी चतुर्दशपूर्वी और सम्पूर्णदशपूर्वी के लिए सम्यक्श्रुत है । नवपूर्वी आदि के लिए सम्यक्श्रुत की भजना (विकल्प) है।'
इस सूत्र के आधार पर जयाचार्य ने यह स्थापना की कि चतुर्दशपूर्वी भीर सम्पूर्ण दशपूर्वी द्वारा रचित आगम प्रमाण है। शेष नवपूर्वी आदि के द्वारा रचित आगम प्रामाण्य की भजना है ।' जो द्वादशाङ्गी से अविरूद्ध है वह प्रमाण है। जो द्वादशाङ्गी के विरुद्ध है वह प्रमाण नहीं है।
१. व्यवहारभाष्य, गा. ३१८
आगमसुतववहारी आगतो छस्विहो उ ववहारो। केवल मणोहि चोद्दस-दस-नव-पुवी य नायब्वो॥ २. नवसुत्ताणि, नंदी, सू०६६
३. प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध, १९१२, २०१९
संपूरण दस पूर्वधर, चउदश पूरवधार । तास रचित आगम हुवे, वारू न्याय विचार ॥ दश, बउदश पूरवधरा, आगम र उदार । ते पिण जिन नी साख थी, विमल न्याय सुविचार ॥
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