SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ नंदी ठाण उपासकदशा' १. आनन्द १. आनन्द २. कामदेव २. कामदेव ३. गृहपति चूलनीपिता ३. गृहपति चूलनीपिता ४. सुरादेव ४. सुरादेव ५. चुल्लशतक ५. चुल्लशतक ६. गृहपति कुण्डकौलिक ६. गृहपति कुण्डकोलिक ७. सद्दालपुत्र ७. सद्दालपुत्र ८. महाशतक ८. महाशतक ९. नन्दिनीपिता ९. नन्दिनीपिता १०. लेयिकापिता १०. लेयिकापिता ८. अन्तकृतदशा प्रस्तुत आगम में मुक्त होने वाले जीवों का वर्णन है। चूणिकार और हरिभद्र ने 'अन्तगड' का अर्थ किया है-अन्तकृतजिसने कर्म अथवा संसार का अन्त किया है।' प्रथम वर्ग में दस अध्ययन हैं इसलिए यह अन्तकृतदशा है। इसका वैकल्पिक अर्थ है-इसमें जीवन की अंतिम दशा का वर्णन है इसलिए इसका नाम अन्तकृतदशा है।' स्थानाङ्ग में 'अन्तगडदसा' के दस अध्ययन बतलाए गए हैं। अन्तगडदसा के वर्तमान स्वरूप में भिन्न नाम उपलब्ध हैं। अभयदेव सूरि ने स्थानाङ्ग की वृत्ति में उसका उल्लेख किया है। तत्त्वार्थवात्तिक और धवला में अन्तकृत व्यक्तियों के नामों का उल्लेख मिलता है।' भट्ट अकलंक ने इन नामों का उल्लेख किस आधार पर किया, यह अनुसंधेय है। द्रष्टव्य यंत्रअंतगड ठाणं तत्त्वार्थ राजवात्तिक/धवला १. गौतम नमि नमि २. समुद्र मातङ्ग मतंग ३.सागर सोमिल सोमिल ४. गंभीर रामगुप्त रामपुत्र ५. स्तिमित सुदर्शन सुदर्शन ६. अचल जमाली यमलीक ७. काम्पिल्य भगाली वलीक ८. अक्षोभ्य किंकष किष्कम्बल ९. प्रसेनजित् चिल्वक पाल १०. विष्णु पाल अम्बडपुत्र अम्बष्ठपुत्र १. अंगसुत्ताणि, भाग ३, उवासगदसाओ, १६ २. ठाणं, १०१११२ ३. (क) नन्दी चूणि, पृ. ६८: अंतकडवस त्ति-कम्मणो संसारस्स वा अंतो कडो जेहिं ते अंतकडा। (ख) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ८३ ४. नन्दी चुणि, पृ. ६८ : पढमवग्गे दस अज्झयण त्ति तस्स खतो अंतकडदस त्ति। अहवा दस त्ति-अवत्था, तबते जा अवत्था सा वणिज्जति त्ति अतो अंतकडदसा। ५. ठाणं, १०१११३ ६. स्थानाङ्ग वृत्ति, प. ४८३ : इह चाष्टौ वर्गास्तत्र प्रथमवर्ग दशाध्ययनानि तानि चामूनि नमीत्यादिसार्द्ध रूपकम्, एतानि च नमीत्यादिकान्यन्तकृत् साधुनामानि अन्तकृद्दशाङ्गप्रथमवर्गेऽध्ययनसंग्रहे नोपलभ्यते । ७. (क) तत्वार्थवार्तिक, १।२०, पृ. ७३ (ख) षट्खण्डागम, पुस्तक १, पृ. १०४ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy