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________________ १६८ ४. आ सुतं मे आउसं ५. तं सुतं मया आउसं ६. तदा सुतं मदा आउसं ७. तहि सुतं मदा आउ । हारिभद्रया वृत्ति' १. सुयं मे आउस तेण भगवया २. आउसंतेगं भगवया ३. सुयं मे आउसंपदा ४. सुयं मे आउस तहि ५. सुयं मे आउ ६. आउस सुयं मे शाश्वत ७. आ सुयं मया तं सुयं मया ९. आ तया सुयं मया १०. आ तहि सुयं मया आ । 5. मलयगिरीया वृत्ति' १. सुयं मे आउसंतेण भगवया एवमक्खायं २. तं नया आयुष्मदन्ते ३. श्रुतं मया आयुष्मता ४. श्रुतं मया हे आयुष्मन् मन्' १. तं मम ६. सुयं में आउ ७. आउस सुयं मे ८. मे सुयं आउ । * के. आर. चन्द्रा ने "सुतं में आउसंतेण भगवता एवमक्खातं " - आचारांग के इस पाठ को सही और प्राचीन माना है । " नन्दी चूर्ण में वर्णित गमक पद्धति के अनुसार केवल यही पाठ सही नहीं है, अन्य पाठ भी सही है। केवल एक पाठ को ही सही मानने पर गमक अनन्त नहीं हो सकते। विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य सू० ७२ का टिप्पण । पर्यव चूर्णिकार ने इसका अर्थ अक्षर के पर्याय और अर्थ के पर्याय किया है । अध्ययन काल में ज्ञान के अंश अथवा पर्याय बढ़ते जाते हैं। इस उत्तरोत्तर वृद्धि की अपेक्षा अनन्त पर्यव बतलाए गए हैं।' त्रस, स्थावर त्रस जीव परीत हैं-परिमित हैं। स्थावर जीव अनन्त हैं । द्रव्यथिक नय की दृष्टि से विचार। चूर्णिकार ने शाश्वत की व्याख्या में पञ्चास्तिकाय आदि का उल्लेख किया है। किन्तु ५. प्राचीन अर्धमागधी की खोज में, १. हरिवृत्ति ०७३ २. मलयगिरीवा वृत्ति प. २१२ ३. मलयगिरि ने ये भेद अर्थ भेद (वाच्य भेद) के आधार पर किए हैं। ४. मलयगिरि ने ये भेद अभिधान भेद (वाचक भेद) के आधार पर किए हैं। Jain Education International नंदी 1 पृ. ९८ ६. नन्दी चूर्ण, पृ० ६२ अक्खरपज्जएहि अत्थपज्जएहि य अनंतं । ७. हारिभद्रया वृत्ति, पृ० ७७: शाश्वता द्रव्यार्थ तयाऽविच्छेदेन प्रवृत्तेः । ८. नन्दी चूर्ण, पृ. ६२ : सासत त्ति पंचत्थिकाइयाइया । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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