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________________ प्र० ५, सू० ८०-६१, टि० ४ II १. पिंडेपणा २. शय्या ३. ईर्या ४. भाषाजात ५. वस्त्रेपणा ६. पात्रपणा ७. अवग्रहप्रतिमा ८-१४. सप्तकक १५. भावना १६. विमुक्ति पदपरिमाण गम कुल उद्देशनका समुद्देशकाल उद्देशकाल में अध्ययन के क्रम का निर्देश है और समुद्देशनकाल में अधीत विषय के स्थिरीकरण और अर्थबोध का निर्देश है । आचाराङ्ग के 'अठारह हजार पद हैं। इसमें आयारचूला के पदों का निर्देश नहीं है । श्वेताम्बर साहित्य में पद का प्रमाण उपलब्ध नहीं है । दिगम्बर साहित्य में प्रमाण का व्यवस्थित निरूपण है । पद के तीन प्रकार हैं १. अर्थ पद -- जितने अक्षरों से अर्थ की उपलब्धि होती है वह अर्थ पद है । सदृशता चूर्णि ' ११ २ प्रमाण पद -आठ अक्षरों से निष्पन्न पद प्रमाण पद है । - ३. मध्यम पद - सोलह सौ चौतीस करोड़ तिरासी लाख सात हजार आठ सौ अठासी (१६३४८३०७८८८ ) - इतने मध्यम पद के वर्ण होते हैं। १. सुतं में आउस तेगं भगवता २. तं सुतं में आउ ३. तहि सुतं में आउसं अङ्गों और पूर्वी का पद परिमाण मध्यम पद के द्वारा होता है ।" मध्यम पद के आधार पर पदों की गणना करने पर आचाराङ्ग का आकार बहुत विशाल हो जाता है। उसका वर्तमान आकार छोटा है । देवधिगणी के समय में संभवतः यही आकार रहा, जो आज उपलब्ध है । उन्होंने अठारह हजार पदों का उल्लेख परम्परा से प्राप्त अवधारणा के आधार पर किया है, ऐसा प्रतीत होता है । आचाराङ्ग के अठारह हजार पदों का उल्लेख श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्परा में समान है ।" १. षट्खण्डागम, पुस्तक १३, पृ. २६६ २. (क) वही, पृ. १९७ : ३ देवगणी ने जब तक आगमों का संकलन किया, तब तक उनका बहुत बड़ा भाग विस्मृति में चला गया था । इसलिए निर्दिष्ट पदों का परिमाण अब उस विशाल ज्ञान राशि का इतिहास मात्र रह गया है । अक्षर Jain Education International ܕ ८५ (ख) ३. रचना की दृष्टि से आचाराङ्ग के अक्षर संख्येय हैं । भङ्ग, विकल्प | आचाराङ्ग के गम अनन्त हैं । वाच्य और वाचक (अभिधान और अभिधेय ) के भेद, संयोजना और के आधार पर एक सूत्र के अनेक भङ्ग बन जाते हैं। चूर्णि व वृत्ति द्वय में भङ्ग रचना की विधि का निर्देश किया है १६७ For Private & Personal Use Only पाहू, पृ. ९३ पू. ६२ www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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