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________________ १६२ नंदी ६. महानिशीथ चणिकार के अनुसार समालोच्य आगम का विषय निशीथ की अपेक्षा विस्तीर्णतर है इसलिए इसकी संज्ञा महानिशीथ है।' महानिशीथ का संशोधन आचार्य हरिभद्र ने किया है। ७. ऋषिभाषित 'ऋषिभाषितानि' किसी कर्ता की कृति नहीं है। इसमें पैतालीस अर्हतों का प्रवचन संकलित है। समवाओ में ऋषिभाषित के चवालीस अध्ययन हैं।' मुनि पुण्य विजयजी का मंतव्य मननीय है “समवायांग सूत्र में चवालीसवें समवाय में ऋषिभाषित सूत्र का उल्लेख मिलता है। देवलोक से च्यवित चवालीस ऋषियों के प्रवचन रूप यह सूत्र है। किन्तु एक प्रश्न उपस्थित होता है कि यहां वर्तमान ऋषिभाषित सूत्र के पैतालीस अध्ययन हैं और समवायांग सूत्र में चवालीस अध्ययनों का उल्लेख मिलता है। इस विभेद को मिटाने के लिए टीकाकार लिखते हैं कि समवायांग सूत्र में देवलोक से च्यवित ऋषियों का ही उल्लेख है। संभव है एक ऋषि किसी अन्य गति से आये हों, अतः उनका उल्लेख नहीं किया है।" ८. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति उपांग के वर्गीकरण के अनुसार यह पांचवां उपांग है । इसमें जंबुद्वीप आदि अनेक विषयों का वर्णन है। ९. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति बाईस प्रकीर्णकों की सूची में इसका उल्लेख हैं।' १०. चन्द्रप्रज्ञप्ति ___चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति का उपलब्ध पाठ और विषय समान है। चंद्रप्रज्ञप्ति के प्रारम्भ में चार मंगल गाथाएं हैं । सूर्यप्रज्ञप्ति में वे नहीं हैं । चंद्रप्रज्ञप्ति का प्रारम्भिक पाठ कुछ प्रतियों में भिन्न है । सूर्यप्रज्ञप्ति की गणना उत्कालिक में की गई है, चंद्रप्रज्ञप्ति की गणना कालिक में । यह अनुसंधान का विषय है। इसका कोई स्पष्ट हेतु नहीं है । इसमें चन्द्र की चर्या का प्रज्ञापन है। ११,१२. क्षुल्लिकाविमानप्रविभक्ति, महाविमानप्रविभक्ति--- विमान प्रविभक्ति में सौधर्म आदि कल्पों के आवलिका और प्रकीर्णक दोनों प्रकार के विमानों का निरूपण है। इसके दो अध्ययन हैं १. क्षुल्लिकाविमानप्रविभक्ति-सूत्र और अर्थ की दृष्टि से संक्षिप्त है। २. महाविमानप्रविभक्ति-सूत्र और अर्थ की दृष्टि से विस्तृत है।' १३. अंगचूलिका चूर्णिकार ने इसका अर्थ आचाराङ्ग की चूला अथवा दृष्टिवाद की चूला किया है ।' व्यवहार सूत्र में अंगचूलिका, वर्गचूलिका और व्याख्याचूलिका इन तीनों का उल्लेख है।' व्यवहार भाष्य में इन चूलिकाओं की आगम के साथ संयोजना का निर्देश मिलता है । अङ्गचूलिका अङ्गों की चूलिका है। वर्गचूलिका महाकल्पश्रुत की चूलिका है और व्याख्याचूलिका व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) की चूलिका है। १. नन्दी चूणि, पृ. ५९ : जं इमस्स निसीहस्स सुत्तत्थेहि वित्थिण्णतरं तं महाणिसीहं । २. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग १, प्रस्तावना पृ. ५४ ३. समवाओ, ४४१: चोयालीसं अज्झयणा इसिभासिया दियलोगचुयाभासिया पण्णत्ता । द्रष्टव्य टिप्पण। ४. पइण्णयसुत्ताई, पृ. ४६ ५. वही, पृ. २५७ से २७९ ६. नन्दी चूणि, पृ० ५९ ७. वही, पृ. ५९ ८. नवसुत्ताणि, ववहारो, १०१३० : एक्कारसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ खुड्डियाविमाणपविभत्ती महल्लियाविमाणपविभत्ती अंगचूलिया वग्गचूलिया वियाहचूलिया नाम अज्झयणे उद्दिसित्तए । ९. व्यवहारभाष्य, गा. ४६५९ : अंगाणमंगचूली महकप्पसुतस्स वग्गचूलीओ। वियाहलिया पुण, पण्णत्तीए मुणेयव्वा । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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