SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्र० ५, सू० ७६-७८, टि० २ आगम युग का जन दर्शन' १. चतुः शरण २. आतुरप्रत्याख्यान ३. भक्तपरिज्ञा ४. संस्तारक ५. तन्दुल वैचारिक ६. चन्द्रवेध्यक ७. देवेन्द्रस्तव ८. गणिविद्या ९. महाप्रत्याख्यान १०. वीरस्तव जैन साहित्य का बृहद इतिहास भाग-२ १. चतु: शरण २. आतुरप्रत्याख्यान ३. महाप्रत्याख्यान ४. भक्तपरिज्ञा ५. वैचारिक ६. संस्तारक तं बुलवेया लियइणयं १. चतु: शरण २. आतुरप्रत्याख्यान ३. भक्तपरिज्ञा ४. संस्तारक ५. तन्दुलवैचारिक ६. गच्छाचार ७. देवेन्द्रस्तव ८. गणिविद्या ९. महाप्रत्याख्यान १०. मरणसमाधि ७. गच्छाचार ८. गणिविद्या ९. देवेन्द्रस्तव १०. मरणसमाधि ११. चन्द्रवेध्यक व वीरस्तव कालिकसूत्र की सूची में ३० आगमों का उल्लेख है १. उत्तराध्ययन Jain Education International जैन साहित्य का बृहद इतिहास, पीठिका १. चतु: शरण २. आतुरप्रत्याख्यान ३. भक्तपरिज्ञा १. आगम युग का जैन दर्शन, पृ० २६ २. तंतुवेवालयं भूमिका पृ. ४ ३. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, पीठिका पृ. ७१०-७१२ ४. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग २, पृ. २४५ ३६३ ४. संस्तारक ५. तन्दुलवैचारिक ६. गच्छाचार ७. देवेन्द्रस्तव ८. गणिविद्या ९. महाप्रत्याख्यान १०. मरणसमाधि चौरासी आगम अधिकार १. चतुः शरण २. आतुरप्रत्याख्यान ३. महाप्रत्याख्यान ४. भक्तप्रत्याख्यान ५.चारिक ६. गणिविद्या ७. देवेन्द्रस्तव ८. चन्द्रविभक्ति ९. संस्तारक १०. मरणविभक्ति उत्तराध्ययन एक कृति है। कोई भी कृति शाश्वत नहीं होती, इसलिए यह प्रश्न भी स्वाभाविक है कि इसका कर्त्ता कौन है ? इस प्रश्न पर सर्वप्रथम निर्मुक्तिकार ने विचार किया है। चूर्णिकार ने भी इस प्रश्न को स्पष्ट शब्दों में उठाया है । नियुक्तिकार की दृष्टि में उत्तराध्ययन एक कर्तृक नहीं है। उनके मतानुसार उत्तराध्ययन के अध्ययन कर्तृत्व की दृष्टि से चार वर्गों में विभक्त होते हैं ( १ ) अंगप्रभव (२) जिन भाषित (३) प्रत्ये (४) संवाद समुत्वित । २-५. दशा, कल्प, व्यवहार, निशीथ ये चार आगम वर्तमान वर्गीकरण के अनुसार छेदसूत्र के वर्गीकरण में हैं। इनका मुख्य विषय कल्प, अकल्प, विधि, निषेध और प्रायश्चित्त है । १६१ ५. चौरासी आगम अधिकार ( अमुद्रित ) । ६. उत्तराध्ययन चूणि, पृ. ६ : एयाणि पुण उत्तरज्झयणाणि कओ केण वा भासियाणिति ? ७. उत्तराध्ययन निर्युक्ति, गा. ४ : अंगप्यभवा जिणभासिया य पत्तेयबुद्धसंवाया । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy