SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६० नंदो १९. विद्याचरणविनिश्चय इस अध्ययन में विद्या और चारित्र का निरूपण किया गया है। २०. गणिविद्या इस अध्ययन में विभिन्न अवसरों पर प्रयुक्त होने वाले मुहूर्त, नक्षत्र आदि का वर्णन है। २१. ध्यानविभक्ति इस अध्ययन में ध्यान का विभाग युक्त विस्तृत वर्णन है । यह सम्प्रति अनुपलब्ध है। २२. मरण विभक्ति इस अध्ययन में मरण का विभाग युक्त विस्तृत वर्णन है। २३. आत्मविशोधि इस अध्ययन में आत्मा की विशुद्धि का वर्णन है । यह सम्प्रति उपलब्ध नहीं है। २४. वीतरागश्रुत-- इस अध्ययन में वीतराग के स्वरूप का विवेचन है। यह सम्प्रति अनुपलब्ध है। २५. संलेखनाश्रुत इस अध्ययन में मारणान्तिक संलेखना का निरूपण है। पुण्यविजयजी ने संलेखनाश्रुत का मरणविभक्ति के अंतर्गत उल्लेख किया है। २६. विहारकल्प इस अध्ययन में जिनकल्प, स्थविरकल्प, प्रतिमाधारी, यथालन्दक और पारिहारिक-मुनि की इन पांचों श्रेणियों का कल्प है। २७. घरगविधि इस अध्ययन में चारित्र की विधियों का निरूपण है। २८. आतुरप्रत्याख्यान इस अध्ययन में आतुर (ग्लान) को कराए जाने वाले प्रत्याख्यान का वर्णन है। २९. महाप्रत्याख्यान इस अध्ययन में चरम अवस्था में कराए जाने वाले प्रत्याख्यान का वर्णन है। प्रस्तुत आगम में छह प्रकीर्णकों के नाम उपलब्ध होते हैं-देवेन्द्रस्तव, तंदुलवैचारिक, चन्द्रवेध्यक, गणिविद्या, आतुरप्रत्याख्यान और महाप्रत्याख्यान । चूर्णिकार ने कुछेक प्रकीर्णकों का विवेचन किया है।' प्रकीर्णकों की सूची भिन्न-भिन्न ग्रन्थों में भिन्न-भिन्न प्रकार की मिलती है। इस विषय में मुनि पुण्यविजयजी ने विस्तार से लिखा है'-सामान्यतया प्रकीर्णक दस माने जाते हैं। किन्तु इनकी कोई निश्चित नामावलि न होने के कारण ये नाम कई प्रकार से गिनाए जाते हैं। इन सब प्रकारों में से संग्रह किया जाय तो कुल बाईस नाम प्राप्त होते हैं, जो इस प्रकार हैं-१. चउसरण, २. आउरपच्चक्खाण, ३. भत्तपरिणा, ४. संथारय, ५. तंदुलवेयालिय, ६. चंदावेज्झय, ७. देविदत्थव, ८. गणिविज्जा, ९. महापच्चक्खाण, १०. वीरत्थय, ११. इसिभासियाई, १२. अजीवकप्प, १३. गच्छाचार, १४. मरणसमाधि, १५. तित्थोगालि, १६. आराहणापडागा, १७. दीवसागरपण्णत्ति, १८. जोइसकरंडय, १९. अंगविज्जा, २०. सिद्धपाहुड, २१. सारावली, २२. जीवविभत्ति। १. पइण्णयसुत्ताई, पृ. १५९ २. नन्दी चूणि, पृ. ५७-६० ३. पइग्णयसुत्ताई, पृ. १८ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy