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जहि जतिवाई भलाई छेडता छेइत्ता अंतगडे मुनिवरसमे तम-रओघ विप्यमुक्के मुक्यसुहमणुत्तरं च पत्ते । एतेअण्णे य एवमाई भावा मूलपरमाणुओगे कहिया सेत्तं । मूलपरमाणुओगे ||
१२१. से किं तं गंडियाणुओगे ? गंडियाणुओगे कुलगरगंडियाओ, तिरथयडियाओ चक्कट्टि गंडियाओ, दसारडिया, बलदेवडियाओ, वासुदेवमंडियाज गणधर गंडियाओ, भवाहू गंडियाओ, तवोकम्ममंडियाओ, हरिवंसगंडियाओ ओसप्पिणीगंडियाओ, डाओ, उस्सप्पिणीगंडियाओ, चित्तंतरगंडियाओ, तिरिय-निरय-ग-मण- विविह परिट्ट एमाइवाओ गंडियाओ आपदिति से गंडाणुओगे। सेस अगुआ ।
अमर-नर
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१२२. से कि तं चूलियाओ ? चूलियाओ - आइल्लाणं चउन्हं पुव्वाणं धूलिया, सेसाई पुरवाई अचूलियाई । सेतं चूलियाओ ।
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अन्तकृतः मुनिवरोत्तमः तमो-रजओघविप्रमुक्तः मोक्षमुचमनुत्तरञ्च प्राप्तः । एते अन्ये च एवमादयः मूलप्रथमानुयोगे कथिताः । मूलप्रथमानुयोगः ।
भावा: स एषः
अथ कः स गण्डिकानुयोगः ? गण्डिकानुयोगे कुलकरगण्डिका, तीर्थकरमण्डिकाः, चक्रवतिगण्डिकाः, दशारगण्डिकाः, बलदेवगडा, वासु देवगण्डकाः गणधरगण्डिका, भद्रबागडिका: तपःकर्मण्डिका, हरिबंशका अवचिनोडिका, हरिवंशगण्डिकाः, अवसर्पिणीगण्डिकाः, उत्सर्पिणीगण्डिकाः, चित्रान्तरटिका, अमर-नर-ति-निर यति गमन-विविध-परिवर्तनेषु एव मादिका: गण्डिकाः आख्यायन्ते । स एषः गण्डिकानुयोगः । स एषः अनुयोगः ।
अथ का: ता: चूलिका: ? चूलिका: आदिमानां चतुर्ण पूर्वाणां चूलिकाः शेषाणि पूर्वाणि अलिकानि । ताः एताः चूलिकाः ।
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१२३. दिट्ठिवायस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ पडिवतीओ, संसेज्जाओनिज्जु सीओ संज्जाओ संग्रहणीओ से णं अंग पाए बारसमे तद् अङ्गार्थतया द्वादशम् अंगे एगे सुयवखंधे, चोइस अङ्गम् एकः भूतस्कन्धः चतुर्दश पुव्वाई, संखेज्जा वत्थू, संखेज्जा पूर्वाणि संख्येयानि वस्तूनि, संख्येयानि चल्लवत्थू, संजा पाहुडा, चूलिकावस्तूनि संख्येयानि प्राभृतानि, खेज पाडपाडा, संज्जाओ संख्येपानि प्राभूतप्राभूतानि संख्येयाः पाहुडियाओ, संखेज्जाओ प्राभृतिका संख्येयाः प्राभृतप्राभृपापाडियाओ संखेज्जाई तिकाः, संख्येयानि पदसहस्राणि पदाग्रेण, पसहरसाई पोणं, संवेज्जा संख्येयानि अक्षराणि, अनन्ताः गमाः अक्खरा, अनंता गमा, अनन्ताः पर्यवाः परीताः अणता पज्जवा, परिता तसा अनन्ता: स्थावराः, अता थावरा, सासय-कड- निबद्ध- निबद्ध निकाचिता:
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त्रसाः, शाश्वत कृतजिनप्रज्ञप्ताः
दृष्टिवादस्य परीता वाचनाः, संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि संख्येयाः वेष्टा, संख्येयाः श्लोकाः, संख्येयाः प्रतिपत्तयः, संख्येयाः निर्युक्तयः, संख्येयाः संग्रहण्यः ।
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नंदी
ऐसे ही अन्यभावों का मूलप्रथमानुयोग में आख्यान किया गया है। वह मूलप्रथमानुयोग है ।
१२१. वह गंडिकानुयोग क्या है ?
दशार
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itsargयोग में कुलकरगंडिकाओं, तीर्थकरगंडिकाओं, चक्रवर्तीगंडिकाओं, इंडिकाओं, बलदेवरादिकालों वासुदेवडिकाम नगराओं, भद्रवाहमंडिकाओं, तपः कर्म गण्डिकाओं, हरिवंशका अवसर्पिणी गण्डिकाओं उत्सर्पिणी गंडिकाओं, रिडिकाओं, देवता, मनुष्य, निर्वञ् नरकगति में गमन और विविध परिवर्तन आदि का आख्यान किया गया है। वह गण्डिकानुयोग है। वह अनुयोग है।
१२२. वे चूलिकाएं क्या हैं ?
प्रथम चार पूर्वो की चूलिकाएं हैं, शेष पूर्वी की चूलिकाएं नहीं हैं ।" वे चूलिकाएं हैं।
१२३. दृष्टिबाद में परिमित वाचनाएं संख्य अनुयोगद्वार संख्येयवेडा (छंद विशेष संय श्लोक संख्येव प्रतिपत्तियां संख्येय निक्तियां और संख्येय संग्रहणियां हैं।
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वह अंगों में बारहवां अंग है। उसके एक श्रुतस्कन्ध, चौदह पूर्व, संख्येय वस्तु ( दो सौ पच्चीस वस्तु) संख्येला प्राभूतप्रभूतप्रभूतप्रति काएं संख्य प्राभूत-प्राभूतिकाएं पद परिमाप की दृष्टि से संख्येय हजार पद, संख्येय अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्यव हैं। उसमें परिमित त्रस, अनन्त स्थावर, शाश्वत कृत निबद्धनिकाचित जिनप्रज्ञप्त भावों का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है।
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