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________________ पांचवां प्रकरण द्वादशांग विवरण : सूत्र १०४-१२० १५१ ११६. पाणाउपुव्वस्स णं तेरस वत्थू प्राणायुपूर्वस्य त्रयोदश वस्तूनि ११६. प्राणायुपूर्व के तेरह वस्तु प्रज्ञप्त हैं । पण्णत्ता॥ प्रज्ञप्तानि । ११७. किरियाविसालपुव्वस्स णं तीसं क्रियाविशालपूर्वस्य त्रिशद् वस्तूनि ११७. क्रियाविशालपूर्व के तीस वस्तु प्रज्ञप्त हैं । वत्थू पण्णत्ता॥ प्रज्ञप्तानि । ११८. लोकबिंदुसारपुवस्स णं पणुवीसं लोकबिन्दुसारपूर्वस्य पञ्चविंशतिः ११८. लोकबिदुसार पूर्व के पच्चीस वस्तु प्रज्ञप्त वत्थू पण्णत्ता॥ वस्तूनि प्रज्ञप्तानि । संगहणी-गाहा संग्रहणी-गाथा संग्रहणी-गाथा दस चोद्दस अट्ठ, दश चतुर्दश अष्टौ, १,२. दस, चौदह, आठ, अठारह, बारह, अठारसेव बारस दुवे य वणि । अष्टादशव द्वादश द्वे च वस्तूनि । दो, सोलह, तीस, बीस, विद्यानुप्रवाद में पन्द्रह, सोलस तीसा वीसा, षोडश त्रिशद् विंशतिः, ग्यारहवें पूर्व में बारह, बारहवें पूर्व में तेरह, पण्णरस अणुप्पवायम्मि ॥१॥ पञ्चदश अनुप्रवादे ॥ तेरहवें पूर्व में तीस और चौदहवें पूर्व में बारस इक्कारसमे, द्वादशंकादशे, पच्चीस-ये क्रमश: पूर्वो की वस्तुएं हैं। बारसमे तेरसेव वत्थूणि । द्वादशे त्रयोदश एव वस्तूनि । तीसा पुण तेरसमे, त्रिंशत् पुनस्त्रयोदशे, चोइसमे पण्णवीसाओ ॥२॥ चतुर्दशे पञ्चविंशतिः ॥ चत्तारि दुवालस अट्ठ, चत्वारि द्वादश अष्टौ, ३. चार, बारह, आठ और दस ये आदि चेव दस चेव चुल्लवत्थूणि ॥ चैव दश चैव चूलवस्तूनि । चार पूर्वो की चूलिका वस्तु हैं । शेष पूर्वो की आइल्लाण चउण्हं, आदिमानां चतुर्णा, चूलिका नहीं है। वह पूर्वगत है। सेसाणं चुलिया नत्थि ॥३॥ शेषाणां चूलिका नास्ति ॥ सेत्तं पुव्वगए॥ तदेतत् पूर्वगतम्। ११६.से कि तं अणुओगे? अणुओगे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-मूलपढमाणुओगे गंडियाणुओगे य॥ अथ कोऽसौ अनुयोगः ? अनुयोगः ११९. वह अनुयोग क्या है ? द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-मूल- अनुयोग दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसेप्रथमानुयोगः गण्डिकानुयोगश्च। १. मूलप्रथमानुयोग २. गंडिकानुयोग । १२०. से किं तं मूलपढमाणुओगे ? अथ कः स मूलप्रथमानुयोगः? १२०. वह मूलप्रथमानुयोग क्या है। मूलपढमाणुओगे णं अरहंताणं मूलप्रथमानुयोगे अर्हतां भगवतां मूलप्रथमानुयोग में अरहन्त भगवान् के भगवंताणं पुन्वभवा, देवलोगग- पर्वभवाः, देवलोकगमनानि, आयुः, पूर्वभव, देवलोकगमन, आयुष्य, च्यवन, जन्म, मणाई, आउं, चवणाई, जम्मणाणि च्यवनानि, जन्मानि च अभि- अभिषेक, राज्य की प्रवर श्री (लक्ष्मी), य अभिसेया, रायवरसिरीओ, षेकाः, राज्यवरश्रियः, प्रव्रज्याः, प्रव्रज्या, उग्रतप, केवलज्ञान की उत्पत्ति, पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवल- तपांसि च उग्राणि, केवलज्ञानोत्पादाः, तीर्थप्रवर्तन, शिष्य, गण, गणधर, आर्या, नाणुप्पयाओ, तित्थपवत्तणाणि य, तीर्थप्रवर्तनानि च, शिष्याः, गणाः, प्रवर्तिनी, चतुर्विध संघ का परिमाण, जिन, सीसा, गणा, गणहरा, अज्जा, गणधराः, आर्याः, प्रवतिन्यः, संघस्य मन पर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, सम्यक्त्वी, पवत्तिणीओ, संघस्स चउम्विहस्स चतुर्विधस्य यत् च परिमाणं, जिन- श्रुतज्ञानी, वादी, अनुत्तरगति वाले, जं च परिमाणं, जिण-मणपज्जव- मनःपर्यव-अवधिज्ञानिनः, सम्यक्त्व- उत्तरवैक्रिय वाले मुनि, जितने सिद्ध हुए, ओहिनाणी, समत्तसुयनाणिणो य, श्रुतज्ञानिनश्च, वादिनः, अनुत्तरगत- जैसे सिद्धि पथ का उपदेश दिया, जितने काल वाई, अणुत्तरगई य, उत्तरवे. यश्च, उत्तरविक्रियावन्तश्च मुनयः, तक प्रायोपगमन अनशन किया तथा जितने उब्विणो य मुणिणो, जत्तिया यावन्तः सिद्धाः, सिद्धिपथो यथा भक्तों का छेदन कर, जो उत्तम मुनिवर अन्तसिद्धा, सिद्धिपहो जह देसिओ, देशितो, यावच्चिरञ्च कालं प्रायोप- कृत हुए हैं, तम और रज से विप्रमुक्त होकर जच्चिरं च कालं पाओवगया, जे गताः, ये यत्र यावन्ति भक्तानि छित्वा मोक्ष के अनुत्तर सुख को प्राप्त किया है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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