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________________ चौया प्रकरण परोक्ष-तज्ञान सूत्र ६८-७३ : सुट्ठवि मेहसमुदए, होइ पभा चंदसुराणं । 1 सेतं साइयं सपज्जबसियं से अणाइयं अपज्जवसियं ॥ ७२. से कि तं गमियं ? (से कि तं अगमिवं ?) गमियं विवाओ। अगमियं कालियं सुर्य से । गमियं । सेत्तं अगमियं ॥ ७३. तं समासओ दुविहं पण्णत्तं तं जहा - अंगपट्ठि च ॥ Jain Education International सुष्वपि मेघसमुदये, भयति प्रभा चन्द्रसूरयोः । तदेतत् सादिकं सपर्यवसितम् तदेतद् अनादिकम् अपर्यवखितम् । अब कि त गमिकम् ? ( अथ कि तद् अधिकम् ? ) यमिकं दृष्टि वादः । अगमिकं कालिकं श्रुतम् । तदेतद् गमिकम् । तदेतद् अगमिकम् । तत्समासतः द्विविधं प्रज्ञप्तं, अंगवाहिरं तथवा अंगप्रविष्टम्, अंगबाह्यञ्च । - ११५ सघन मेघपटल होने पर भी चन्द्र और सूर्य की प्रभा का सर्वथा विलोप नहीं होता, कुछ न कुछ प्रकाश बना रहता है ।" वह सादि सपर्यवसित है । वह अनादि अपर्यवसित है । ७२. वह गमिक क्या है ? (वह अगमिक क्या है ? ) गर्मिक दृष्टिवाद है। अगमिक कालिकत है । वह गमिक है । वह अगमिक है । ७३. वह संक्षेप में दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसेअंगप्रविष्ट और अंगबाह्य । " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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