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________________ नंदी ११४ ६८. से कि तं साइयं सपज्जवसियं, अथ किं तत् सादिकं सपर्यव- ६८. वह सादि सपर्यवसित और अनादि अपर्यवसित अणाइयं अपज्जवसियं च? इच्चेयं सितम्, अनादिकम् अपर्यवसितञ्च ? क्या है ? दुवालसंगं गणिपिडगं-वुच्छित्ति. इत्येतद् द्वादशाङ्ग गणिपिटक-- यह द्वादशाङ्ग गणिपिटक-व्युच्छित्ति नय नयठ्याए साइयं सपज्जवसियं, युच्छित्तिनयार्थतया सादिकं सपर्यव- की अपेक्षा सादि सपर्यवसित है, अव्युच्छित्ति अवुच्छित्तिनयट्ठयाए अणाइयं सितम, अव्युच्छित्तिनयार्यतया अनादि- नय की अपेक्षा अनादि अपर्यवसित है। अपज्जवसियं ॥ कमपर्यवसितम्। ६६. तं समासओ चउन्विहं पण्णतं, तं तत्समासतश्चतुर्विधं प्रज्ञप्त, ६९. वह संक्षेप में चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जहा -दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, तद्यथा- द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, जैसे-द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः । भावओ। तत्थ दवओ णं सम्म- भावतः । तत्र द्रव्यतः सम्यक्श्रुतं एक द्रव्यतः सम्यक्श्रुत एक पुरुष की अपेक्षा सुयं एगं पुरिसं पडुच्च साइयं पुरुषं प्रतीत्य सादिकं सपर्यवसितं, सादि सपर्यवसित है । अनेक पुरुषों की अपेक्षा सपज्जवसियं, बहवे पुरिसे य बहन पुरुषान् च प्रतीत्य अनादिकम् अनादि अपर्यवसित है। पड़च्च अणाइयं अपज्जवसियं। अपर्यवसितम् । क्षेत्रतः पञ्चभरतानि क्षेत्रत:-पांच भरत, पांच ऐरवत की अपेक्षा खेत्तओ णं-पंचभरहाइं पंचएरव- पञ्चऐरवतानि प्रतीत्य सादिक सादि सपर्यवसित है, पांच महाविदेह की याइं पडुच्च साइयं सपज्जवलियं, सपर्यवसितं, पञ्च महाविदेहान् अपेक्षा अनादि अपर्यवसित है। पंच महाविदेहाइं पडुच्च अणाइयं प्रतीत्य अनादिकम् अपर्यवसितम् । कालतः-अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी की अपज्जवसियं। कालओ णं- कालतः-अवसपिणीम् उत्सपिणीञ्च अपेक्षा सादि सपर्यवसित है, अवसर्पिणी और ओसप्पिणि उस्सप्पिणि च पडुच्च प्रतीत्य सादिकं सपर्यवसितं, नोअव उत्सर्पिणी विभाग से मुक्त काल की अपेक्षा साइयं सपज्जवसियं, नोओसप्पिणि सर्पिणी नोउत्सपिणीञ्च प्रतीत्य अनादि अपर्यवसित है। नोउस्सप्पिणि च पडुच्च अणाइयं अनादिकम् अपर्यवसितम् । भावतः- भावत:---जिन प्रज्ञप्त जिन भावों का जब अपज्जवसियं । भावओ णं-जे ये यदा जिनप्रज्ञप्ताः भावाः आख्या आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन, जया जिणपण्णता भावा आघ- यन्ते प्रज्ञाप्यन्ते प्ररूप्यन्ते दर्श्यन्ते उपदर्शन होता है, उन भावों और उस समय विजंति पण्णविज्जंति परू- निदर्श्यन्ते उपदर्श्यन्ते, तान् तदा की अपेक्षा सादि सपर्यवसित है, तथा क्षायोविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति प्रतीत्य सादिकं सपर्यवसितं, क्षायो पशमिक भाव की अपेक्षा अनादि अपर्यवसित उवदंसिज्जति, ते तया पडुच्च पशमिकं पुनः भावं प्रतीत्य अनादिसाइयं सपज्जवसियं, खाओव- कम् अपर्यवसितम् । समियं पुण भावं पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं। अहवा-भवसिद्धियस्स सुयं अथवा–भवसिद्धिकस्य श्रुतं सादिकं अथवा-भवसिद्धिक का श्रुत सादि साइयं सपज्जवसियं, अभवसिद्धि- सपर्यवसितम, अभवसिद्धिकस्य अतम सपर्यवसित है, अभवसिद्धिक का श्रुत अनादि यस्स सुयं अणाइयं अपज्जव- अनादिकम् अपर्यवसितम् । अपर्यवसित है। सियं॥ ७०. सव्वागासपएसग्गं सव्वागासपए- सर्वाकाशप्रदेशाग्रं सर्वाकाशप्रदेशः ७०. सम्पूर्ण आकाश के प्रदेश का जो परिमाण है सेहि अणंतगुणियं पज्जवम्गक्खरं अनन्तगृणितं पर्यवाग्राक्षरं निष्पद्यते। उसे सम्पूर्ण आकाश के प्रदेशों के अनन्त निप्फज्जइ॥ गुणा करने पर पर्यव परिमाण वाला अक्षर निष्पन्न होता है। ७१. सव्वजीवाणं पि य णं-अक्खरस्स अगंतभागो निच्चग्याडिओ, जइ पुण सो वि आवरिज्जा, तेणं जीवो अजीवत्तं पाविज्जा। सर्वजीवानामपि च-अक्षरस्य अनन्तभागो नित्यमुद्घाटितः, यदि पुनः सोऽपि आवियेत, तेन जीवोऽजीवत्वं प्राप्नुयात् । ७१. अक्षर का अनन्तवां भाग सब जीवों में नित्य उद्घाटित (अनावृत) रहता है । यदि वह आवृत हो जाए तो जीव अजीवत्व को प्राप्त हो जाता है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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