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नंदी
दृष्टि
६०.से कि तं अणक्खरसुयं? अण- अथ कि तद् अनक्षरश्रुतम् ? ६० वह अनक्षरश्रुत क्या है ?
क्खरसुयं अणेगविहं पण्णत्तं, तं अनक्षरश्रुतम् अनेकविधं प्रज्ञप्त, अनक्षरश्रुत अनेक प्रकार का प्रज्ञप्त है, जहातद्यथा
जैसेऊससियं नीससियं, उच्छ्वसितं निःश्वसितं,
उच्छ्वास, निःश्वास, थूकना, खासना, निच्छदं खासियं च छीयं च । निष्ठय तं कासितञ्च क्षुतञ्च ।
छींकना, नाक साफ करना, सानुनासिक निस्सिघियमणुसारं, निस्सिडि घतमनुस्वारम्
ध्वनि या नाक से उच्चार्यमाण ध्वनि, सीटी अणक्खरं छेलियाईयं ॥१॥ अनक्षरं सेंटितादिकम् ॥
बजाना--ये श्रुतज्ञान के हेतु हैं। सेत्तं अणक्खरसुयं ॥ तदेतद् अनक्षरश्रुतम् ।
वह अनक्ष रश्रुत है। ६१. से कि तं सण्णिसुयं ? सण्णिसुयं अथ कि तत्संज्ञिश्रुतम् ? संज्ञि- ६१. वह संज्ञीश्रुत क्या है ? तिविहं पण्णतं, तं जहा–कालि- श्रुतं त्रिविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा
संज्ञीश्रुत तीन प्रकार का प्राप्त है, जैसेओवएसेणं हेऊवएसेणं दिदिवा- कालिक्युपदेशेन, हेतूपदेशेन १. कालिकी उपदेश २. हेतु उपदेश ३. दृष्टिओवएसेणं ॥ दृष्टिवादोपदेशेन ।
बाद उपदेश। ६२. से कि तं कालिओवएसेणं । अथ कि तत्कालिक्युपदेशेन ? ६२. वह कालिकी उपदेश क्या है ? कालिओवएसेणं-जस्स णं अस्थि कालिक्पुपदेशेन –यस्यास्ति ईहा,
कालिकी उपदेश-जिस व्यक्ति के ईहा, ईहा, अपोहो, मग्गणा, गवेसणा, अपोहः, मार्गणा, गवेषणा, चिन्ता,
अपोह, मार्गणा, गवेषणा, चिन्ता और विमर्श चिता, वोमंसा से णं सण्णीति विमर्शः-स संज्ञीति लभ्यते । यस्य
होता है। वह कालिकी उपदेश की अपेक्षा
से संज्ञी है। जिसके ईहा, अपोह, मार्गणा, लब्भइ । जस्स णं नत्थि ईहा, नास्ति ईहा, अपोहः, मार्गणा, गवेषणा, अपोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिता, चिन्ता, विमर्शः--सोऽसंजीति लभ्यते । गवेषणा, चिन्ता, और विमर्श नहीं होता वह
कालिकी उपदेश की अपेक्षा से असंज्ञी है। वीमंसा से णं असण्णीति तदेतत् कालिक्युपदेशेन । लगभइ । सेत्तं कालिओवएसेणं ॥
वह कालिकी उपदेश है। ६३. से कितं हेऊवएसेणं ? हेऊवए- अथ किं तद् हेतुपदेशेन ? ६३. वह हेतु उपदेश क्या है ?
सेणं-जस्स णं अस्थि अभि- हेतूपदेशेन-यस्यास्ति अभिसंधारण- हेतु उपदेश-जिस जीव में पर्यालोचना संधारणपुब्विया करणसत्ती से प्रविका करणशक्तिः स संज्ञीति पूर्वक करणशक्ति होती है। वह हेतु उपदेश णं सण्णीति लब्भइ। जस्स णं लभ्यते । यस्य नास्ति अभिसंधारण
की अपेक्षा से संज्ञी है। जिस जीव में नत्थि अभिसंधारणपुग्विया पविका करणशक्तिः सोऽसंज्ञीति
पर्यालोचना पूर्वक करणशक्ति नहीं होती। करणसत्ती-से णं असण्णीति लभ्यते । तदेतद् हेतूपदेशेन ।
वह हेतु उपदेश की अपेक्षा से असंज्ञी है। लब्भइ । सेतं हेऊवएसेणं ॥
वह हेतु उपदेश है।
६४. से कि तं दिट्ठिवाओवएसेणं। अथ कि तद् दृष्टिवादो- ६४. वह दृष्टिवाद उपदेश वया है ? दिदिवाओवएसेणं-सण्णिसुयस्स पदेशेन ? दृष्टिवादोपदेशेन-संज्ञि
___ दृष्टिवाद उपदेश-संज्ञीश्रुत के क्षयोपशम खओवसमेणं सण्णी (ति ?) श्रतस्य क्षयोपशमेन संज्ञी (इति ?)
से जीव संज्ञी है । असंज्ञी श्रुत के क्षयोपशम से लब्भइ, असण्णिसुयस्स खओवलभ्यते, असंज्ञिश्रुतस्य क्षयोपशमेन
वह असंज्ञी है। वह दृष्टिवाद उपदेश है। वह समेणं असण्णी (ति?) लब्भइ। असंज्ञी (इति?) लभ्यते । तदेतद्
संजी श्रुत है । वह असंज्ञीश्रुत है । सेत्तं दिदिवाओवएसेणं । सेत्तं
दृष्टिवादोपदेशेन। तदेतद् संज्ञिसण्णिसुयं । सेत्तं असण्णिसुयं ॥ __ श्रुतम् । तदेतद् असंज़िश्रुतम् । ६५. से कि तं सम्मसुयं । सम्मसुयं- अथ किं तत् सम्यक्श्रुतम्? सम्यक्- ६५. वह सम्यकश्रुत क्या है ?
जं इमं अरहंतेहि भगवंतेहिं श्रतं-यदिदम अर्हदिभः भगवभिः सम्यक्श्रुत-समुत्पन्न ज्ञान दर्शन के उप्पण्णनाणदंसणधरेहिं तेलोक्क- उत्पन्नज्ञानदर्शनधरैः त्रैलोक्य 'चहिय'- धारक, तीन लोक द्वारा अभिलषित, प्रशंसित चहिय-महिय-पूइएहि तीय- महित-पूजितः अतीतप्रत्युत्पन्नानागतः और पूजित, अतीत वर्तमान और भविष्य के पडुप्पण्णमणागयजाणएहि
सर्वजैः सर्वदशिभिः प्रणीतं द्वाद- ज्ञाता, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी तीर्थकर भगवान् द्वारा
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