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________________ नंदी समयपविट्ठा पुग्गला गहणमाग- ग्रहणमागच्छन्ति । तदेतत् प्रतिबोधकगच्छति । सेत्तं पडिबोहगदिळं- दृष्टान्तेन । तेणं॥ ५३. से किं तं मल्लगदिट्टतेणं? मल्ल- अथ किं तेन 'मल्लग'दष्टान्तेन? गदिद्रुतेणं-से जहानामए केइ ‘मल्लग' दृष्टान्तेन---तद् यथानाम पुरिसे आवागसीसाओ मल्लगं कश्चित् पुरुषः आपाकशीर्षात् 'मल्लगं' गहाय तत्थेनं उदर्गाबदं पक्खि- गृहीत्वा तत्रकं उदकबिन्दु प्रक्षिपेत् स विज्जा से नठे, अण्णे पक्खित्ते से नष्टः, अन्यः प्रक्षिप्तः सोऽपि नष्टः । वि नठे । एवं पक्खिप्पमाणेसु- एवं प्रक्षिप्यमाणेषु-प्रक्षिप्यमाणेषु पक्खिप्पमाणेसु होही से उदगबिंदू भविष्यति स उदकबिन्दुर्यः तं 'मल्लगं' जे णं तं मल्लगं रावेहिति, होही 'रावेहिति', भविष्यति स उदकबिन्दुर्यः से उदर्गाबद् जे णं तंसि मल्लगंसि तस्मिन् 'मल्लगंसि' स्थास्यति, ठाहिति, होही से उदबिंदू जे भविष्यति स उदकबिन्दुर्यः तं 'मल्लगे' तं मल्लगं भरेहिति, होही से भरिष्यति, भविष्यति स उदकबिन्दुर्यः उदबिंदु जे णं तं मल्लगं पवा- तं 'मल्लगं' प्रवाहयिष्यति । एवमेव हेहिति । एवामेव पक्खिप्पमाहि- प्रक्षिप्यमानः-प्रक्षिप्यमानः अनन्तैः पक्खिप्पमाणेहि अणंतेहिं पुग्गलेहिं पुद्गलः यदा तद् व्यञ्जनं पूरितं जाहे तं वंजगं पूरियं होइ, ताहे भवति, तदा 'हुं' इति करोति, नो '' ति करेइ, नो चेव णं जाणइ चव जानाति को वा एष शब्दादिः ? के वेस सद्दाइ ? तओ ईहं पविसइ, तत ईहां प्रविशति, ततो जानाति तओ जाणइ अमुगे एस सद्दाइ। अमुक एष शब्दादिः। ततोऽवायं तओ अवायं पविसइ, तओ से प्रविशति, ततः स उपगतो भवति । उवगय हवइ । तओं ण धारण ततो धारणां प्रविशति, ततो धारयति पावसइ, तओं ण धारेइ संखेज्ज संख्येयं वा कालं, असंख्येयं वा वा कालं, असंखेज्जं वा कालं। कालम् । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं तद यथानाम कश्चित् पुरुषोसई सुणिज्जा, तेणं सद्दे त्ति उग्ग- ऽव्यक्तं शब्दं शृणुयात् तेन शब्द हिए, नो चेव णं जाणइ के वेस इत्यवगृहीतम्, नो चैव जानाति को सद्दाइ ? तओ ईहं पविसइ, तओ वा एष शब्दादिः ? तत ईहां जाणइ अमुगे एस सद्दे। तओ णं प्रविशति, ततो जानाति अमुक एष अवायं पविसइ, तओ से उवगयं शब्दः । ततः अवायं प्रविशति, ततः हवइ। तओ धारणं पविसइ, तओ स उपगतः भवति । ततो धारणा णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, प्रविशति, ततो धारयति संख्येयं वा असंखेज्जं वा कालं। कालं असंख्येयं वा कालम् । ५३. वह मल्लक दृष्टांत क्या है ? मल्लक दृष्टांत-जैसे कोई एक पुरुष ने आवा से शराब (सिकोरा) लेकर उस पर पानी का एक बूंद डाला। वह सूख गया । दूसरा विन्दु डाला वह भी सूख गया । इस प्रकार डालते-डालते एक बूंद ऐसी है जो शराव को गिला कर देगी । एक बूंद ऐसी है जो शराव में ठहर जाएगी । एक बंद ऐसी है जो शराव को भर देगी। एक बूंद ऐसी है जो शराव में से जल की धारा बहा देगी। इसी प्रकार अनन्त पुद्गलों का प्रक्षेप होते-होते जब वह व्यञ्जन पूर्ण हो जाता है । तब व्यक्ति 'हुंकार' करता है । वह नहीं जानता यह शब्द आदि क्या है ? उसके पश्चात् बह ईहा में प्रवेश करता है, तब वह जानता हैयह अमुक शब्द आदि है उसके पश्चात् अवाय में प्रवेश करता है, तब शब्द आदि उपगत हो जाता है-उसका निर्णय हो जाता है। उसके पश्चात् वह धारणा में प्रवेश करता है। निर्णीत विषय को संख्येय काल अथवा असंख्येय काल तक धारण करता है । जैसे कोई पुरुष अव्यक्त शब्द को सुनता है। उसने शब्द है ऐसा अवग्रह किया । वह नहीं जानता यह कौनसा शब्द है? उसके पश्चात् वह ईहा में प्रवेश करता है तब वह जानता है- यह अमुक शब्द है। उसके पश्चात् अवाय में प्रवेश करता है, तब शब्द उपगत हो जाता है उसका निर्णय हो जाता है। उसके पश्चात् वह धारणा में प्रवेश करता है। निर्णीत विषय को संख्येय काल अथवा असंख्येय काल तक धारण करता है। जैसे कोई पुरुप अव्यक्त रूप को देखता है। उसने रूप है ऐसा अवग्रह किया। वह नहीं जानता यह कौनसा रूप है ? उसके पश्चात् वह ईहा में प्रवेश करता है । तब वह जानता है-यह अमुक रूप है। उसके पश्चात् अवाय में प्रवेश करता है, तब रूप उपगत हो जाता से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं तद् यथानाम कश्चित् पुरुषोऽव्यक्तं रूवं पासिज्जा, तेणं रूवे त्ति __ रूपं पश्येत, तेन रूपमित्यवगृहीतम, नो उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के चव जानाति किं वा एतद रूपमिति ? वस रूवात्त । ता इह पावसइ, तत ईहां प्रविशति, ततो जानाति तओ जाणइ अमुगे एस रूवे। तओ अमकमेतद् रूपम् । ततः अवार्य अवायं पविसइ, तओ से उवगयं प्रविशति, ततः तद् उपगतं भवति । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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