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________________ तीसरा प्रकरण । परोक्ष-आभिनिबोधिक ज्ञान : सूत्र ५३ हवइ । तओ धारणं पविसइ, तओ ततो धारणां प्रविशति, ततो धारयति णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, संख्येयं वा कालं असंख्येयं वा कालम् । असंखेज्जं वा कालं। से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं तद् यथानाम कश्चित् पुरुषोऽव्यक्तं गंधं अग्घाइज्जा, तेणं गंधे त्ति गन्धमाजिघ्रत्, तेन गन्ध इत्यवउग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के गृहीतम् नो चैव जानाति को वा एष वेस गंधे त्ति ? तओ ईहं पविसइ, गन्धः इति । तत ईहां प्रविशति, ततो तओ जाणइ अमुगे एस गंधे। तओ जानाति अमुक एष गन्धः । ततः अवायं पविसइ, तओ से उवगयं __ अवायं प्रविशति, ततः स उपगतः हवइ । तओ धारणं पविसइ, तओ भवति । ततो धारणां प्रविशति, ततो णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, धारयति संख्येयं वा कालं असंख्येयं असंखेज्ज वा कालं। वा कालम् । है उसका निर्णय हो जाता है । उसके पश्चात् वह धारणा में प्रवेश करता है। निर्णीत विषय को संख्येय काल अथवा असंख्येय काल तक धारण करता है। जैसे कोई पुरुष अव्यक्त गंध को सूंघता है। उसने गंध है ऐसा अवग्रह किया। वह नहीं जानता यह कौनसा गंध है ? उसके पश्चात् वह ईहा में प्रवेश करता है । तब वह जानता है-यह अमुक गंध है। उसके पश्चात् अवाय में प्रवेश करता है, तब गंध उपगत हो जाता है-उसका निर्णय हो जाता है। उसके पश्चात् वह धारणा में प्रवेश करता है। निर्णीत विषय को संख्येय काल अथवा असंख्येय काल तक धारण करता है। जैसे कोई पुरुष अव्यक्त रस का आस्वादन करता है। उसने रस है ऐसा अवग्रह किया। वह नहीं जानता यह कौनसा रस है ? उसके पश्चात् वह ईहा में प्रवेश करता है। तब वह जानता है-यह अमुक रस है। उसके पश्चात् अवाय में प्रवेश करता है, तब रस उपगत हो जाता है-उसका निर्णय हो जाता है। उसके पश्चात् वह धारणा में प्रवेश करता है। निर्णीत विषय को संख्येय काल अथवा असंख्येय काल तक धारण करता से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं तद् यथानाम कश्चित् रसं आसाइज्जा, तेणं रसे त्ति पुरुषोऽव्यक्तं रसमास्वादयेत्, तेन उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के रस इत्यवगृहीतम् नो चैव जानाति वेस रसे ति? तओ ईहं पविसइ, को वा एष रसः इति। तत ईहां तओ जाणइ अमुगे एस रसे । तओ प्रविशति, ततो जानाति अमुक एष अवायं पविसइ, तओ से उवगयं रसः। ततः अवायं प्रविशति, हवइ । तओ धारणं पविसइ, तओ ततः स उपगतः भवति । ततो णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, धारणां प्रविशति, ततो धारयति असंखेज्जं वा कालं। संख्येयं वा कालं असंख्येयं वा कालम्। से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं तद् यथानाम कश्चित् पुरुषोऽव्यक्तं फासं पडिसंवेइज्जा, तेणं फासे त्ति स्पर्श प्रतिसंवेदयेत्, तेन स्पर्श इत्यवउग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस गहीतम् नो चैव जानाति को वा एष फासे ति? तओ ईहं पविसइ, स्पर्श इति । ततः ईहां प्रविशति, तओ जाणइ अमुगे एस फासे। ततो जानाति अमुक एष स्पर्शः । तओ अवायं पविसइ, तओ से ततः अवायं प्रविशति, ततः स उपगतः उवगयं हवइ। तओ धारणं भवति । ततो धारणां प्रविशति, ततो पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं धारयति संख्येय वा कालं असंख्येयं वा कालं, असंखेज वा कालं। वा कालम्। जैसे कोई पुरुष अव्यक्त स्पर्श का प्रतिसंवेदन करता है। उसने स्पर्श है ऐसा अवग्रह किया । वह नहीं जानता यह कौनसा स्पर्श है ? उसके पश्चात् वह ईहा में प्रवेश करता है । तब यह जानता है - यह अमुक स्पर्श है। उसके पश्चात् अवाय में प्रवेश करता है, तब स्पर्श उपगत हो जाता है उसका निर्णय हो जाता है। उसके पश्चात् वह धारणा में प्रवेश करता है। निर्णीत विषय को संख्येय काल अथवा असंख्येय काल तक धारण करता है। जैसे कोई पुरुष अव्यक्त स्वप्न का प्रतिसंवेदन करता है। उसने स्वप्न है ऐसा अवग्रह किया । वह नहीं जानता यह कौनसा स्वप्न है ? उसके पश्चात् वह ईहा में प्रवेश करता है । तब यह जानता है-यह अमुक स्वप्न है। उसके पश्चात् अबाय में प्रवेश से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं तद् यथानाम कश्चित् पुरुषोसुमिणं पडिसंवेदेज्जा, तेणं सुमि- ऽव्यक्तं स्वप्नं प्रतिसंवेदयेत्, तेन णेत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ स्वप्न इत्यवगृहीतं नो चैव जानाति के वेस सुमिणे त्ति ? तओ ईहं को वा एष स्वप्न इति ? ततः ईहां पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस प्रविशति, ततो जानाति अमुक एष सुमिणे । तओ अवायं पविसइ, तओ स्वप्नः। ततः अवायं प्रविशति, Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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