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________________ तीसरा प्रकरण : परोक्ष-आभिनिबोधिक ज्ञान सूत्र ४२-५२ छविवहा पण्णत्ता, तं जहा सोईदियधारणा, चक्खिदियधारणा, घादिवधारणा जिम्भिदिय धारणा, फासिंदियधारणा, नोईदियधारणा ॥ ४६. तोते णं इमे एगट्टिया नामापोसा नाणावंजणा पंच नामधिज्जा भवंति तं जहा - १. धरणा २. धारणा ३. ठवणा ४. पट्टा ५. कोट्ठे । सेत्तं धारणा ॥ ५०. उग्गहे इक्कसामइए, अंतोमुहुतिया ईहा, अंतोहुलिए अवार, धारणा संवा कालं असे वा कालं ॥ ५१. एवं अट्ठावीस इविहस्स आभिणिबोहियनाणस्स वंजणुग्गहस्स परूवणं करिस्सामि पडिवोहग दितेण, मल्लगदिट्ठतेण य ॥ - ५२. से किं तं पडिवोदितेणं ? पडिवोदिते से जहा नाभए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं सुतं परियोज्जा अमुगा! अमुग ! सि । तत्थ चोयगे पण्णवगं एवं वयासी-कि एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति ? दुसमय पविट्ठा पुग्ला गहणमागच्छति ? जाय इससमयपविदुर पुग्गला गहण मागच्छति ? संखेज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति ? अवेज्जसमयपवि पुग्गला गहणमागच्छति ? एवं वदतं चोपगं पण्णवए एवं पयासीनो एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहण मागच्छंति, नो दुसनयपविट्ठा पुग्ला ग्रहणमागच्छति जाव नो दससमयपविट्ठा पुग्गला ग्रहणमा गच्छति नो संखेज्जसमयपविट्ठा पुग्ला महणमागच्छति, असंखेज्ज Jain Education International षड् विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-श्रोत्रेन्द्रियधारणा, चक्षुरिन्द्रियधारणा, घ्राणेन्द्रियधारणा, जिह्वेन्द्रियधारणा, स्पर्शनेन्द्रियधारणा, नोइन्द्रियधारणा । तस्य इमानि एकाधिकानि नानाघोषाणि नानाव्यञ्जनानि पञ्च नामधेयानि भवन्ति, तद्यथा १. धरणा २. धारणा ३. स्थापना ४. प्रतिष्ठा ५. कोष्ठः । सा एषा धारणा । अवग्रहः एकसामयिकः, आन्तमाहूतिकी ईहा आन्तमौहूर्तिकः अवायः, धारणा संख्येयं वा कालं असंख्येयं वा कालम् । एवमष्टाविंशतिविधस्य आभिनिबोधिकज्ञानस्य व्यञ्जनावग्रहस्य प्ररूपणं करिष्यामि प्रतिबोधकदृष्टान्तेन, 'मल्लग' दृष्टान्तेन च । -- ८५ धारणा के छः प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे१. श्रोत्रेन्द्रिय धारणा २. चक्षुरिन्द्रिय धारणा ३. घ्राणेन्द्रिय धारणा ४. जिल्ह्वेन्द्रिय धारणा ५. स्पर्शनेन्द्रिय धारणा ६. नोइन्द्रिय धारणा । ४९. उसके नाना शेष और नानाव्यञ्जन वाले पांच पर्यायवाची नाम हैं, जैसे- १. धरणा २. धारणा ३ स्थापना ४ प्रतिष्ठा ५. कोष्ठ | वह धारणा है । ५०. अवग्रह का कालमान एक समय का है, ईहा का अन्तर्मुहूर्त, अवाय का अन्तर्मुहूर्त्त तथा धारणा का संख्येयकाल अथवा असंख्येयकाल । " ५१. इस अठ्ठावीस प्रकार वाले अभिनिबोधिवज्ञान के व्यञ्जनावग्रह की प्ररूपणा प्रतिबोधक और मल्लक दृष्टांत के द्वारा करूंगा। को जगाए-अमुक, ! तब कोई प्रेरक प्रज्ञापक को पूछे अथ किं तेन प्रतिबोधकदृष्टान्तेन ? ५२. वह प्रतिबोधक दृष्टांत क्या है ? प्रतिबोधकवृष्टान्तेन तद्यथानाम प्रतियोधक दृष्टांत जैसे कोई एक पुरुष कश्चित् पुरुषः कञ्चित् पुरुषं प्रति- किसी सोए हुए दूसरे पुरुष बोधयेत्-अमुक अमुक इति अमुक ! तत्र चोदकः प्रज्ञापकं एवम् अवादीत्कि एकसमयप्रविष्टाः पुद्गलाः ग्रहणमागच्छन्ति ? द्विसमयप्रविष्टाः पुद्गलाः ग्रहणमागच्छन्ति ? याबद दशसमयप्रविष्टाः पुद्गलाः प्रहणमागच्छन्ति ? संख्येयसमयप्रविष्टाः पुद्गलाः ग्रहणमागच्छति ? असंख्येयसनयप्रविष्टाः पुद्गलाः ग्रहणमागच्यन्ति एवं वदनां चोद प्रशापकः एवम् अवादीत् नो एकसमयप्रविष्टाः पुद्गलाः ग्रहगमागच्छन्ति, नो द्विसमयप्रविष्टाः पुद्गलाः ग्रहणमागच्छन्ति यावद् नो दश क्या एक समय में प्रविष्ट पुद्गल ज्ञान उत्पन्न करते हैं ? दो समय में प्रविष्ट पुद्गल ज्ञान उत्पन्न करते हैं ? यावत् दस समय में प्रविष्ट पुद्गल ज्ञान उत्पन्न करते हैं ? संख्येय समय में प्रविष्ट पुद्गल ज्ञान उत्पन्न करते हैं ? असंख्येय समय में प्रविष्ट पुद्गल ज्ञान उत्पन्न करते हैं ? ऐसा पूछने पर प्रेरक से प्रज्ञापक ने इस प्रकार कहा एक समय में प्रविष्ट पुद्गल ज्ञान उत्पन्न नहीं करते, दो समय में प्रविष्ट पुद्गल ज्ञान उत्पन्न नहीं करते यावत् दस समय में प्रविष्ट पुद्गल ज्ञान उत्पन्न नहीं करते, संख्येय समय में प्रविष्ट पुद्गल ज्ञान उत्पन्न नहीं करते, असंख्येय समय में प्रविष्ट पुद्गल ज्ञान उत्पन्न करते हैं। वह प्रतिबोधक दृष्टांत है । पुगनाः मानो संख्येयसमपप्रविष्टाः पुसा ब्रणमागत असंख्येयसमयप्रवि पुद्गलाः For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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