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द्वितीय श्रुतस्कन्ध के मूल मात्र का अनुवाद है, जो चार भागों में प्रकाशित
है।62 4. गोपालदास जीवाभाई पटेल ने सूत्रकृतांग सूत्र का हिन्दी छायानुवाद
किया है, जो बम्बई से प्रकाशित है। 3 । 5. स्थानकवासी परम्परा के पण्डित मुनि उमेशचन्द्रजी म. ने भी अति संक्षेप
में सूत्रकृतांग के मूल पाठ का हिन्दी अनुवाद किया है। अनुवाद की इस शृंखला में सूत्रकृतांग का सबसे महत्त्वपूर्ण और विशिष्ट अनुवाद प्रवचनभूषण अमर मुनिजी म. द्वारा हुआ है। इसमें हेमचन्द्रजी म. ने अनुवाद सह विद्वत्तापूर्ण व्याख्या प्रस्तुत की है, जिसका सम्पादन अमर मुनिजी म. ने अमर- सुखबोधिनीव्याख्या द्वारा किया है। प्रस्तुत संस्करण सूत्रकृतांग सूत्र का विराट्काय संस्करण है, जो दो भागों में प्रकाशित है। इसमें सर्वप्रथम शुद्ध मूलपाठ है, तदनन्तर संस्कृत छाया, पदान्वयार्थ, मूलार्थ और विस्तृत विवेचन है, जिससे मूल का स्पष्ट अर्थ- बोध हो जाता है। यह विवेचन नियुक्ति तथा शीलांकवृत्ति पर आधारित होने पर भी अत्यन्त सरस एवं सुबोध है। बिन्दुरूप मूलपाठ का सिन्धु रूप विशद विश्लेषण विवेचनकार की पाण्डित्य पूर्ण विवेचना
शक्ति एवं प्रखर वैदुष्य को उजागर करता है। 7. सूत्रकृतांग सूत्र के हिन्दी अनुवाद का आधुनिक सम्पादन युवाचार्य
मधुकरमुनिजी म. के प्रधान सम्पादकत्व में हुआ है, जो दो भागों में प्रकाशित है। सूत्रकृतांग सूत्र का महत्त्वपूर्ण युगीन हिन्दी अनुवाद किया है आचार्य महाप्रज्ञ ने। प्रस्तुत आगम दो भागों में प्रकाशित है। इसका हिन्दी अनुवाद मूलस्पर्शी है। मूलपाठ के साथ संस्कृत छाया तथा टिप्पण भी लिखे गये है। ये टिप्पण चूर्णि तथा वृत्ति को लक्ष्य में रखकर ही दिये गये है, जिसमें गाथागत शब्दों की विस्तृत व्याख्या पाठान्तर के साथ प्रस्तुत की गयी है। यह अनुवाद टिप्पण सहित होने से विद्वज्जनों
तथा शोधार्थियों के लिये बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। 9. सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध का हिन्दी अनुवाद मुनि ललितप्रभ
सागरजी ने भी किया है, जो मूल पाठानुसारी है।
सूत्रकृतांग सूत्र का परिचय एवं उसका व्याख्या साहित्य / 93
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