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सूत्रकृतांग सूत्र के अनुवाद सूत्रकृतांग सूत्र पर मुख्य रूप से तीन भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध होते हैं- हिन्दी, गुजराती तथा अंग्रेजी । हिन्दी अनुवाद 1. सूत्रगडांग सूत्र का सर्वप्रथम हिन्दी अनुवाद लगभग सवासौ वर्ष पूर्व
का उपलब्ध होता है, जिसके कर्ता भीमसिंहमाणक है। इस अनुवाद में शीलांकवृत्ति, हर्षकुलकृत दीपिका एवं पार्श्वचन्द्रकृत बालावबोध का भी समावेश है। इसकी लिपि एवं भाषा शैली दोनों में शताब्दी पूर्व का प्रभाव स्पष्ट नजर आता है। सम्भवत: संक्षिप्त रूप से ही सही, परन्तु खड़ी बोली में सूत्रकृतांग का यह पहला-पहला ही अनुवाद होगा,
जिसमें तीन टीकाओं का आधार लिया गया हो। 2. सूत्रकृतांग का दूसरा हिन्दी अनुवाद स्थानकवासी परम्परा के आचार्य
अमोलक ऋषिजी म. ने किया है। आज से लगभग आठ दशक पूर्व इन्होंने एकाकी आगम बत्तीसी का प्राकृत से हिन्दी में अनुवाद कर श्रुतोपासना का अदभुत कार्य किया है। इनके द्वारा अनूदित सूत्रकृतांग सूत्र मात्र मूल पाठ पर आधृत होने से अत्यन्त संक्षिप्त है। अत: गूढ शब्दों के रहस्य सुस्पष्ट तथा सहजगम्य नहीं है तथापि सामान्य रूप से आगम ज्ञान प्राप्ति में सहायक होने से तथा शुद्ध हिन्दी में प्रथम अनुवाद होने से इसका स्वत: महत्त्व है। इसी कड़ी में सूत्रकृतांग सूत्र का विस्तृत हिन्दी अनुवाद आचार्य श्री जवाहरलाल म. के तत्त्वावधान में पण्डित अम्बिकादत्त ओझा द्वारा हुआ है। इन्होंने सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध की भद्रबाहुकृत नियुक्ति तथा शीलांकवृत्ति का अक्षरश: हिन्दी अनुवाद किया है, जो सरल और आगम के मर्म को समझने में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ है। इसमें मूल सूत्र की संस्कृत छाया, व्याकरण, अन्वयार्थ तथा भावार्थ के द्वारा सूत्रकृतांग सूत्र की गूढ विषय-वस्तु सहजतया सुस्पष्ट हो गयी है। भाषा में प्रांजलता न होने का कारण अक्षरश: अनुवाद है तथापि पण्डित ओझा का प्रगाढ पाण्डित्य तथा विषय सम्बन्धी विस्तृत अध्ययन स्पष्ट
परिलक्षित होता है। प्रथम श्रुतस्कन्ध का अनुवाद वृत्ति सहित है तथा 92 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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