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________________ को और अधिक स्पष्ट करने के लिये उद्धरण के रूप में संस्कृत तथा प्राकृत गाथाओं के भी यत्र-तत्र दर्शन होते है। कहीं-कहीं नागार्जुनी वाचना के पाठान्तर भी दृष्टिगत होते है। इस चूर्णि में मंगल चर्चा, तीर्थसिद्धि, संघात, विस्त्रसाकरण, बन्धनादिपरिणाम, भेदादि परिणाम, क्षेत्रादिकरण, आलोचना, परिग्रह, ममता, पञ्चमहाभूतिक, एकात्मवाद, तज्जीव तच्छरीरवाद, अकारकवाद, स्कन्धवाद, नियतिवाद, अज्ञानवाद, जगत्कर्तृत्ववाद, त्रिराशिवाद, लोकविचार, प्रतिजुगुप्सा (गोमांस, मद्य, लहसुन, पलांडु आदि के प्रति अरुचि), वस्त्रादि प्रलोभन, सुरविचार, महावीरगुण स्तुति, कुशीलता-सुशीलता, वीर्य निरूपण, समाधि, दान, समवसरण, वैनयिकवाद, नास्तिकमत, सांख्यमत, ईश्वरकर्तृत्व चर्चा, भिक्षु के आहार का वर्णन, वनस्पतिभेद, पृथ्वीकायिकभेद, स्याद्वाद, आजीवकमत निरास, गोशालकमत निरास, बौद्धमत निरास तथा जातिवाद निरास आदि विषयों पर विशेष रूप से प्रकाश डाला गया है। 3. सूत्रकृतांग टीका _ नियुक्ति, भाष्य और चूर्णि की रचना के बाद जैनाचार्यों ने संस्कृत में आगमों पर अनेक टीकाओं की रचना की। टीका का अभिप्राय संस्कृत विवरण से है। इन टीकाओं के निर्माण से आगमिक साहित्य के क्षेत्र में काफी विस्तार हुआ। प्रत्येक आगम पर कम से कम एक टीका तो लिखी ही गयी। टीकाकारों ने इन टीकाओं में नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य आदि के विषयों का विस्तृत विवेचन तो किया ही, साथ ही नये-नये हेतुओं द्वारा उन्हें पुष्ट भी किया। रचनाकार - सूत्रकृतांग टीका के रचयिता आचार्य शीलांक मूर्धन्य टीकाकार थे। वे निवृत्ति कुलीन थे तथा इनका अपर नाम शीलाचार्य तथा तत्वादित्य भी था। कहा जाता है कि इन्होंने नौ अंगों पर टीकाएँ लिखी थी, किन्तु वर्तमान में केवल आचारांग व सूत्रकृतांग की टीकाएँ ही उपलब्ध है। रचनाकाल आचारांग तथा सूत्रकृतांग इन दोनों वृत्तियों में कहीं पर भी उनके जीवनवृत्त के सम्बन्ध में उल्लेख नहीं मिलता तथापि आचारांगटीका की विभिन्न प्रतियों में उल्लिखित भिन्न-भिन्न समय के आधार पर उनके समय का निश्चित निर्धारण किया जा सकता है। किसी प्रति में शक संवत 772 का उल्लेख है, तो किसी सूत्रकृतांग सूत्र का परिचय एवं उसका व्याख्या साहित्य / 89 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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